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बिना चिकित्सक कोई दवा न ले – डॉ. रमन राज, पश्चिम बंगाल में 3 में से 1 व्यक्ति एसिडिटी की चपेट

आसनसोल । गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (जीईआरडी) को लेकर एक चौंका देने वाली रिपोर्ट सामने आयी है। दरअसल नई दिल्ली के गुरु तेज बहादुर अस्पताल के मेडिसिन विभाग द्वारा किए गए और इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च इन मेडिकल साइंसेज में प्रकाशित एक शोध अध्ययन के अनुसार, यह स्थिति अब राज्य में विभिन्न आयु समूहों की 31 फीसदी से अधिक आबादी को प्रभावित कर रही है। शुक्रवार आसनसोल उषाग्राम स्थित एक होटल के सभागार में हील फाउंडेशन द्वारा “एसिडिटी करोड़ों लोगों की समस्या का सुरक्षित समाधान” थीम पर आयोजित मीडिया जागरुकता कार्यशाला में चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. रमन राज और डॉ. सुभदीप घोष ने इसके कारणों, स्वास्थ्य प्रभावों और सुरक्षित तरीकों पर चर्चा की। अब सवाल यह है कि गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी) है क्या ? आपको बता दें कि गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज एक गंभीर रोग है, जिसके कारण व्यक्ति को काफी असहजता का सामना करना पड़ता है। आम भाषा में लोग इसे सीने में जलन या हार्टबर्न भी कहते हैं। इसके कारण खट्टी डकार, ब्लोटिंग और उल्टी जैसे लक्षणों का भी सामना करना पड़ता है। यह स्थिति तब पैदा होती है, जब हमारे पेट में मौजूद एसिड वापस इसोफेगस नली में पहुंच जाता आमतौर पर पेट संबंधी ये समस्याएं लोगों में कई अन्य कारणों से भी हो सकती हैं, लेकिन अगर कोई व्यक्ति सप्ताह में 2-3 बार खाना खाने के बाद सीने में जलन, ब्लोटिंग और डकार आदि का सामना करते हैं, तो यह एसिड रिफ्लक्स का संकेत हो सकता है। ऐसे में यह सलाह दी जाती है, कि तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। कई बार इसके कारण गंभीर पेट दर्द और सीने में जलन की समस्या हो सकती है। जिसके कारण कई लक्षणों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, करोड़ो लोगों की समस्या के सुरक्षित। डॉ. रमन राज, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, हार्ट केयर क्लिनिक, आसनसोल ने चौंकाने वाले आंकड़ों का खुलासा करते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में जीईआरडी और एसिडिटी से संबंधित समस्याओं का प्रसार बड़े पैमाने पर है, 3 में से 1 व्यक्ति इस स्थिति से प्रभावित है। डॉ. रमन ने एसिडिटी प्रबंधन के लिए सतर्क दृष्टिकोण के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि समय पर इलाज जरूरी है। एसिडिटी से संबंधित विकारों के लिए, डॉक्टर अक्सर ऐसी दवाएं लिखते हैं जो अतिरिक्त एसिड उत्पादन को दबा देती हैं, जैसे कि रेनिटिडाइन। 1981 में पेश की गई, रेनिटिडाइन ने खुद को एसिडिटी से संबंधित स्थितियों के लिए सबसे विश्वसनीय दवाओं में से एक के रूप में स्थापित किया है, जिससे पूरे भारत में लाखों रोगियों को लाभ हुआ है। वहीं डॉ. सुभदीप घोष ने पेट में एसिड के संतुलित स्तर की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हाइपरएसिडिटी पाचन और समग्र स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। पश्चिम बंगाल में मछली, तले हुए और मसालेदार भोजन, चाय, कॉफी, कार्बोनेटेड पेय और शराब के अत्यधिक सेवन से अक्सर एसिडिटी की समस्याएं लोगों में होती है। डॉ. घोष ने यह भी बताया कि खराब नींद के पैटर्न और अनियमित कार्य शेड्यूल जैसी हानिकारक जीवनशैली के कारण इन विकारों का प्रसार बढ़ रहा है। एसिडिटी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, नियमित व्यायाम दिनचर्या अपनाना, जंक और मसालेदार भोजन से परहेज करना और उचित जलयोजन बनाए रखना आवश्यक निवारक उपाय हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर से परामर्श करने की पुरजोर सिफारिश की।

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