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29 सितंबर को किया जाएगा पूर्णिमा का श्राद्ध:पितृ पक्ष में घर-परिवार के मृत लोगों की याद में धूप-ध्यान और दान-पुण्य करने की है परंपरा

आसनसोल । शुक्रवार, 29 सितंबर को भाद्रपद मास की अंतिम तिथि पूर्णिमा है। इस दिन पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाएगा। इसके बाद 30 सितंबर यानी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पितृ पक्ष शुरू हो जाएगा। पितरों के लिए धूप-ध्यान और दान-पुण्य करने का ये पक्ष 14 अक्टूबर तक रहेगा। शिल्पांचल के आसनसोल के निरंजन पंडित के मुताबिक, पितृ पक्ष में घर-परिवार के मृत सदस्यों को याद किया जाता है, उनके लिए धूप-ध्यान और दान-पुण्य किए जाते हैं। जिस व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि पर होती है, पितृ पक्ष की उसी तिथि पर उस मृत व्यक्ति के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। जिन लोगों की मृत्यु की तिथि मालूम न हो, उनका श्राद्ध सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या (14 अक्टूबर) पर किया जाता है।

श्राद्ध कर्म करने का सही समय क्या है?

पितृ पक्ष में दोपहर के समय धूप-ध्यान करना चाहिए। सुबह और शाम को देवी-देवताओं के लिए पूजा-पाठ की जाती है। दोपहर का समय पितरों के लिए धूप-ध्यान करने का रहता है। दोपहर में करीब 12 बजे पितरों को याद करते हुए श्राद्ध कर्म करें।

धूप-ध्यान कैसे करना चाहिए?

दोपहर में गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और उनके अंगारों पर पितरों का ध्यान करते हुए गुड़-घी डालें। हथेली में जल भरें और अंगूठे की ओर से पितरों को अर्पित करें। इस तरह सामान्य विधि से भी पितरों के लिए धूप-ध्यान किया जा सकता है।

पितृ पक्ष में कौन-कौन से शुभ काम करना चाहिए?

पितृ पक्ष में पितरों के लिए धूप-ध्यान करने के लिए साथ ही रोज सुबह देवी-देवताओं की विशेष पूजा जरूर करें। दिन की शुरुआत सूर्य को जल चढ़ाकर करें। शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। बाल गोपाल को माखन मिश्री का भोग लगाएं। तुलसी को जल चढ़ाएं। शाम को तुलसी के पास दीपक जलाएं। पितृ पक्ष में गरुड़ पुराण, श्रीमद् भागवद् कथा का पाठ करना चाहिए या सुनना चाहिए। माना जाता है कि इन ग्रंथों का पाठ करने से पितरों को शांति मिलती है। पितरों के नाम पर जरूरतमंद लोगों को अनाज, जूते-चप्पल, धन और कपड़ों का दान करें। किसी गोशाला में हरी घास दान करें। किसी सार्वजनिक स्थान पर छायादार पेड़ों के पौधे लगाएं और संकल्प लें, बड़े होने तक इन पौधों की देखभाल करेंगे। किसी पवित्र नदी में स्नान करें, तीर्थ दर्शन करें। किसी पौराणिक महत्व वाले मंदिरों में दर्शन-पूजन करें।

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