कथाकार संजीव को लेकर मनोज कुमार शुक्ल की आलोचना पुस्तक ‘समय, समाज और संजीव’ का हुआ विमोचन
आसनसोल । मनोज ने कथाकार संजीव पर काम किया तो उन्होंने रचना को ध्यान में रखा है। आलोचना कर्म हिम्मत का काम है। सच को सच कहने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए। समय, समाज और संजीव किताब का मूल आधार समय और समाज है। संजीव अपने समय को कैसे देखते हैं, मनोज ने इस पर गहरा अध्ययन किया है। उक्त बातें प्रख्यात आलोचक डॉ. अरुण होता ने जनमित्र साहित्य कला संस्था, आसनसोल के तत्वावधान में आयोजित डॉ. मनोज कुमार शुक्ल की आलोचना पुस्तक ‘समय, समाज और संजीव’ पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कही। यह कार्यक्रम रविवार को आसनसोल के बीएन मोड़ स्थित डिस्ट्रिक्ट लाइब्रेरी में आयोजित किया गया था। वहीं मनोज कुमार शुक्ल की आलोचना पुस्तक ‘समय, समाज और संजीव’ का विमोचन विद्वत व्यक्तियों द्वारा किया गया। इस दौरान आलोचक मृत्युंजय पाण्डेय ने कहा कि कथाकार संजीव हिन्दी साहित्य में एक घटना हैं। ऐसे कथाकार कभी-कभार ही आते हैं। उनके लेखन को मापना कठिन है। इस पुस्तक में बीस अध्याय हैं जो संजीव के बीस साहित्यकार रूपों को सामने लाते हैं। संजीव ने शिल्पांचल छोड़ दिया पर शिल्पांचल वालों ने उन्हें नहीं छोड़ा है। संजीव ने साहित्य की जमीन शिल्पांचल में बनाई। राहुल सिंह ने कहा कि इस पुस्तक की एक अच्छी बात यह है कि हम संजीव से मिलते, बोलते, बतियाते चलते हैं। इसमें बहुत विस्तार के साथ संजीव के कथा सूत्रों की खोज की गई है। वहीं कथाकार सृंजय ने कहा कि कोयलांचल संजीव का अपना दागिस्तान है, तो मनोज कुमार शुक्ल का अपना दागिस्तान है। पुस्तक का पहला अध्याय मास्टर की है जिसे बहुत ही आत्मीयता से लिखा गया है। संजीव को जानना है तो पहले अध्याय से गुजरना होगा। वहीं पुस्तक के लेखक मनोज कुमार शुक्ल ने कहा कि यह उनके जीवन का एक सपना है जो उन्होंने पूरा किया। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. ममता मिश्र ने कहा कि कथाकार शिल्पांचल की धरोहर हैं। इस कार्यक्रम का संचालन कुल्टी कॉलेज की अध्यापिका गुलनाज ने किया। इस मौके पर कथाकार महावीर राजी, शिव कुमार यादव, आलोचक कृष्ण कुमार श्रीवास्तव, विजय नारायण सिंह, दिनेश कुमार, डॉ. पुष्पा तिवारी, डॉ. संजीव पांडेय, व्यंग्यकार अभिजीत दुबे, विजय ठाकुर, जयराम पासवान, नवीन चंद्र सिंह, पूजा पाठक, प्रीति सिंह, मनोहर भाई पटेल, अवधेश कुमार यादव, आनंद कुमार आनंद सहित अन्य अनेक उपस्थित थे।