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“हम बंगाल की अस्मिता के लिए लड़े हैं, लड़ते रहेंगे”, शहीद दिवस की रैली से शुरू हुई 2026 की सियासी जंग

कोलकाता । 21 जुलाई की सुबह जब कोलकाता की सड़कों पर तृणमूल कांग्रेस के झंडे लहरा रहे थे और लाखों कार्यकर्ता ‘मां, माटी, मानुष’ की गूंज के साथ शहीद दिवस रैली की ओर बढ़ रहे थे, तब बहुतों को ये अंदाज़ा नहीं था कि यह महज़ श्रद्धांजलि का आयोजन नहीं, बल्कि 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए ममता बनर्जी की आखिरी निर्णायक चढ़ाई का आगाज़ है।

32 साल बाद फिर वही जज़्बा

1993 की वो रैली, जिसमें पुलिस की गोलियों ने 13 युवाओं की जान ली और ममता बनर्जी को ज़िंदगी की सबसे बड़ी चोट दी। उसी को हर साल याद करके वे शहीद दिवस मनाती रही हैं। लेकिन इस बार का शहीद दिवस महज़ अतीत की टीस नहीं, बल्कि भविष्य की ताज़ा लड़ाई का एलान था।

मंच से गरजीं ममता बनर्जी, कहा”बंगाल को बांटने की कोशिश न करें”

रैली के मंच पर खड़ी ममता बनर्जी ने बिना लाग लपेट बीजेपी को सीधी चुनौती दे डाली। उन्होंने कहा, “हम बंगाल की अस्मिता के लिए लड़े हैं, लड़ते रहेंगे। जो लोग आज बंगालियों को बाहरी बता रहे हैं, वही लोग कल हमें वोट मांगते दिखेंगे। मैं चेतावनी देती हूं। अगर हमारे लोगों को देश में कहीं भी परेशान किया गया, तो पूरे देश में आंदोलन होगा।” उनका इशारा सीधा-सीधा बीजेपी शासित राज्यों में बंगाली प्रवासियों की कथित ‘भाषाई प्रोफाइलिंग’ की तरफ था।

एनआरसी से लेकर ‘राजबंशी उत्पीड़न’ तक – टीएमसी का पलटवार तेज

टीएमसी ने हाल ही में असम के दिनहाटा में रहने वाले राजबंशी समुदाय के नागरिक उत्तम कुमार ब्रजवासी को एनआरसी का नोटिस मिलने का मुद्दा जोरशोर से उठाया है। ममता का आरोप है कि यह एक पूर्व-नियोजित साजिश है। एक ऐसा ‘संवैधानिक हमला’ जिसका मकसद बंगाल की पहचान को मिटाना है। उनके शब्दों में, “बीजेपी चाहती है कि बंगालियों को डरा कर उनके वोटर लिस्ट से नाम काट दिए जाएं। यह देश को तोड़ने की साजिश है और हम इसे नाकाम कर देंगे।”

टीएमसी की नई गाथा – वाम से लड़ाई, अब भगवा से संघर्ष

1993 में ममता ने कांग्रेस से अलग होकर वाम मोर्चे के खिलाफ मोर्चा खोला था। 2011 में उनकी पार्टी ने वाम की 34 साल पुरानी सरकार को उखाड़ फेंका। लेकिन अब उनके निशाने पर भारतीय जनता पार्टी है। टीएमसी का दावा है कि वाम मोर्चा “धांधली” से सत्ता में टिके थे, तो बीजेपी “संविधान को हाईजैक” करके लोकतंत्र को चुपचाप कुचल रही है।

चुनावी जमीन पर बिछी चालों की बिसात – कौन करेगा ‘चेकमेट’?

बंगाल की राजनीति में अब दो विचारधाराएं आमने-सामने हैं। एक ओर है ममता बनर्जी की क्षेत्रीय अस्मिता की राजनीति, दूसरी तरफ है बीजेपी की राष्ट्रवादी विकास की सोच। इस युद्ध में अब सिर्फ भाषण या नारों से काम नहीं चलेगा। ममता को अपनी पार्टी के अंदर की गुटबाज़ी, भ्रष्टाचार के आरोपों और कानून व्यवस्था की खस्ता हालत से भी लड़ना होगा। वहीं बीजेपी को भी बंगाल की सांस्कृतिक संवेदनशीलता को समझते हुए अपने सियासी कदम रखने होंगे।

क्या शहीद दिवस ममता की शक्ति है, या आखिरी संकल्प?

एक तरफ ममता की ज़ुबान में ग़ुस्सा है, आंखों में दर्द है और मंच से सियासी आंसुओं के ज़रिए जनता को रिझाने की कोशिश है। तो दूसरी तरफ बीजेपी अपनी विकासवादी और ‘बेटियों की रक्षा’ वाली राजनीति से दिल जीतने की रणनीति पर है। 2026 में क्या ममता बनर्जी फिर से सत्ता में लौटेंगी या 34 साल बाद वाम को उखाड़ने वाली महिला नेता, अब खुद बीजेपी की आंधी में उड़ जाएंगी? फिलहाल तो बंगाल की सड़कों पर “जय बांग्ला” और “जय श्रीराम” दोनों गूंज रहे हैं लेकिन असली नतीजा अगले साल ही तय होगा।

 

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