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मोह माया के जाल में फंसना किसी भी मनुष्य के लिए उचित नहीं आज है कल नहीं, एकमात्र शाश्वत अगर कुछ है तो वह है भगवान का नाम – अनिरुद्ध जी महाराज

  आसनसोल। आसनसोल के सेनरेले इलाके के कन्यापुर हाई स्कूल के समक्ष मैदान में सप्तहव्यापी श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानभक्ति महायज्ञ श्री श्याम सुंदर दास जी महाराज के तत्वावधान में एवं ननी गोपाल मंडल, शांतारानी मंडल, जयदेव मंडल, सुकदेव मंडल, बुद्धदेव मंडल सहित पूरा मंडल परिवार की ओर से शुभारंभ हुआ। वृंदावन से श्रद्धेय अनिरुद्ध जी महाराज भागवत कथा पाठ कर रहे हैं। रविवार इसका चौथा दिन था। चौथे दिन भी हजारों की तादाद में श्रद्धालु और उनके भक्त श्रीमद्भागवत पाठ का श्रवण करने मैदान में पहुंचे। श्री अनिरुद्धाचार्य जी महाराज ने उपस्थित भक्त मंडली के सामने श्रीमद् भागवत गीता को अपने मुखारविंद भक्त मंडली को भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप का वृतांत सुनाया। उन्होंने कहा कि हिरण्यकश्यप एक दुर्दांत राजा था, जिसको स्वयं ब्रह्मा से वरदान प्राप्त हुआ था कि उसे ब्रह्मा द्वारा सृजित किसी भी व्यक्ति या प्राणी नहीं मार सकता। उसे न दिन में न रात में शाम में न दोपहर में कभी नहीं मारा जा सकता। 1 वर्ष के 12 महीने होते हैं उन 12 महीनों में भी उसे नहीं माना जा सकता है। ऐसे में हिरण्यकश्यप को कैसे मारा जाए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया जिसे ब्रह्मा जी ने नहीं बनाया था। गोधूलि बेला में नरसिंह भगवान ने अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध किया क्योंकि हिरण्यकश्यप को यह वरदान प्राप्त था कि पृथ्वी के किसी भी अस्त्र-शस्त्र से उसका वध नहीं हो सकता। यह भगवान विष्णु का वरदान था। जिसने हिरण्यकश्यप जैसे दुर्दांत व्यक्ति पर विजय प्राप्त की। नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध करने के पश्चात भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाया। क्योंकि उस समय नरसिंह भगवान इतने आक्रामक मुद्रा में थे कि भगवान ब्रह्मा से लेकर कोई भी उनके तेज को कम नहीं कर पा रहे थे। लेकिन भक्त प्रह्लाद जब उनके सामने गए तो वह शांत हो गए। उन्होंने भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाया और कहा कि तुमने बहुत परीक्षाएं दी हैं और इसी का परिणाम है कि आज हिरण्यकश्यप जैसे दुर्दांत व्यक्ति का वध संभव हुआ। अनिरुद्ध आचार्य जी महाराज ने कहा कि हमें भी अपने जीवन में पग-पग पर परीक्षा देनी होती है। परीक्षा देकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। अन्यथा हम वही रह जाएंगे। वहीं मनुष्य द्वारा मोह माया के जाल में फस जाने के विषय पर अनिरुद्ध आचार्य जी महाराज ने कहा कि मोह माया के जाल में फंसना किसी भी मनुष्य के लिए उचित नहीं है। क्योंकि यह सब अस्थायी है। यह रिश्ते नाते सब अस्थायी है। आज है कल नहीं एकमात्र शाश्वत अगर कुछ है तो वह है भगवान का नाम। उन्होंने कहा कि एक मनुष्य के जन्म में जितना हिस्सा माता-पिता का होता है। उससे कहीं ज्यादा भगवान का होता है। इसलिए अगर भगवान ने किसी को अपने पास बुला लिया तो उनके परिजनों को अफसोस नहीं करना चाहिए। क्योंकि हर मनुष्य के जीवन पर पहला अधिकार भगवान का होता है। इसलिए उन्होंने उपस्थित भक्त मंडली को उपदेश दिया कि वह परिवार के साथ रहे।     अपने परिवार को सुखी,समृद्धि रखे। लेकिन मोह माया में जकड़े न क्योंकि यह दुनिया और यह जीवन नश्वर है। जब किसी की मृत्यु होगी तब उनके परिजनों को काफी दुख होगा। इसलिए पहले से ही मोह माया से बचे रहें। ताकि भविष्य में मनुष्य को रोना न पड़े। चौथे दिन शिल्पांचल के विशिष्ट समाजसेवी, व्यवसायी सह धार्मिक प्रवृत्ति के धनी कृष्णा प्रसाद भागवत कथा श्रवण करने पहुंचे। मौके पर कृष्णा प्रसाद ने कथा आरंभ होने के पहले जो आरती हुई। उन्होंने आरती किया। पूरा भागवत कथा का श्रवण किया।
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