प्रत्येक गैर बांग्ला भाषा स्कूल में बांग्ला भाषा के पठन-पाठन को करना होगा अनिवार्य – जितेंद्र तिवारी
आसनसोल । लोकसभा चुनाव को देखते हुए राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा और लिंग्विस्टिक माइनॉरिटी एसोसिएशन की दो मांगो में एक मांग को अनुमति दी है। दूसरी मांग के लिए आंदोलन लगातार जारी रहेगा। उक्त बाते आसनसोल के पूर्व मेयर सह भाजपा नेता जितेंद्र तिवारी ने शुक्रवार गोधूलि स्थित उनके आवासीय कार्यालय में पत्रकार सम्मेलन कर पत्रकारों को कही। जितेंद्र तिवारी ने कहा कि वर्ष 2023 में पश्चिम बंगाल सरकार के उच्च शिक्षा विभाग की ओर से एक घोषणा की गई थी कि पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस परीक्षा से हिंदी, उर्दू तथा संथाली भाषा को हटा दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस घोषणा के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेता तथा बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ सुकांत मजूमदार और लिंग्विस्टिक माइनॉरिटी एसोसिएशन की ओर से इसका विरोध किया गया था। उन्होंने कहा कि इन सभी विरोधों के कारण राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह घोषणा कर दी की पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस परीक्षा में हिंदी, उर्दू तथा संथाली भाषा को फिर से शामिल किया गया है। अब इन भाषाओं में परीक्षा ली जाएगी। जितेंद्र तिवारी ने कहा की पंचायत चुनाव से पहले इन तीन भाषाओं को हटाकर वोट लेने की कोशिश की गई थी। अब लोकसभा चुनाव से पहले जब उनको लगा की हिंदी, उर्दू तथा संथाली भाषा के लोगों का वोट चाहिए तो उन्होंने एक बार फिर से इन तीन भाषाओं को शामिल कर दिया। उन्होंने कहा कि बंगाल की जनता बेवकूफ नहीं है। वह ममता बनर्जी के इस तरकीब को समझ चुके हैं, जितेंद्र तिवारी ने कहा कि लिंग्विस्टिक माइनॉरिटी एसोसिएशन की मांग थी कि सिर्फ तीन भाषाओं में परीक्षा ही न ली जाए। बल्कि पश्चिम बंगाल में जितने भी गैर बांग्ला भाषा के स्कूल है।
वहां पर बांग्ला भाषा के पठन-पाठन को अनिवार्य किया जाए। उन्होंने कहा कि एक आंकड़े के अनुसार पूरे पश्चिम बंगाल में 5000 ऐसे स्कूल है अगर प्रत्येक स्कूल में बांग्ला के लिए दो शिक्षकों की भी नियुक्ति की जाए तो 10000 बांग्ला भाषी युवाओं को नौकरी मिलेगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को मजबूरी में यह मांग माननी पड़ी। लेकिन उनकी दूसरी मांग अभी भी कायम है और वह यह की प्रत्येक गैर बांग्ला भाषा स्कूल में बांग्ला भाषा के पठन-पाठन को अनिवार्य किया जाए।