हिंदी, उर्दू के जिन साहित्यकारों को जनता के लिए मोमबत्ती बनना था, वह आजकल सत्ता के लिए अगरबत्ती बन गए हैं – जितेंद्र तिवारी
आसनसोल। आसनसोल नगर निगम के पूर्व मेयर सह भाजपा नेता जितेंद्र तिवारी ने एक ट्वीट किया जिसके माध्यम से उन्होंने हिंदी और उर्दू भाषा के बुद्धिजीवियों, लेखकों और साहित्यकारों को आड़े हाथों लिया। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है कि हिंदी, उर्दू के जिन साहित्यकारों को जनता के लिए मोमबत्ती बनना था। वह आजकल सत्ता के लिए अगरबत्ती बन गए हैं। जितेंद्र तिवारी द्वारा हिंदी उर्दू के साहित्यकारों पर इस तरह का कटाक्ष क्यों किया गया। यह समझने के लिए हमें आज से कुछ सप्ताह पीछे जाने की जरूरत है। हाल ही में राज्य सरकार की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था जिसमें पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस परीक्षा में हिंदी उर्दू और संथाली भाषा की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया और बांग्ला में 300 अंकों के एक प्रश्न पत्र को पास करना अनिवार्य कर दिया गया। इसे लेकर जितेंद्र तिवारी पहले भी मुखर हो चुके है। उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम कई बार राज्य सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की है। उनका कहना है कि राज्य सरकार के इस फैसले से हिंदी, उर्दू और संथाली भाषा के विद्यार्थी पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस परीक्षा में बिछड़ जाएंगे। क्योंकि उनको प्राथमिक कक्षाओं में बंगला पढ़ने का अवसर ही नहीं मिलता तो अचानक पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस परीक्षा में वह बांग्ला प्रश्न पत्र में उत्तीर्ण कैसे होंगे। लेकिन आज का ट्वीट उन्होंने हिंदी और उर्दू के साहित्यकारों पर कटाक्ष करते हुए किया है। समझा जा रहा है कि राज्य सरकार के इस फैसले के बाद भी जिस तरह से हिंदी और उर्दू के बुद्धिजीवी साहित्यकार खामोश है। इसी मुद्दे को दर्शाने के लिए जितेंद्र तिवारी द्वारा यह ट्वीट किया गया है। अब देखना यह है कि हिंदी तथा उर्दू के बुद्धिजीवियों की तरफ से इस पर क्या प्रतिक्रिया आती है।