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आध्यात्मिक सोच ही हमारे वर्तमान जीवन एवं पारलौकिक जीवन दोनों में सार्थक होगा

आसनसोल । प्रार्थना सबके लिए करें, उनसे ईश्वर के प्रति ग्रहणशीलता की अपेक्षा करना और यह मांगना कि वे भौतिक, मानसिक, या आध्यात्मिक सहायता प्राप्त करें मगर कान में सुनी हुई बातों को ध्यान में न देकर आंखों पर एवं दिमाग पर जोर जरूर लगाए। उक्त बातें आसनसोल के व्यवसायी सुरेन जालान ने कही। उन्होंने कहा कि कानों की बातें सुनकर केवल कुछ क्षण तक सम्मानित हो सकते हैं। सम्मान की आशा न रखते हुए कर्तव्य परायण होना ही सनातन धर्म का मूल उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन में अगर उच्च पद, योग्यता, आवश्यकता से अधिक धन, ऐश्वर्य और सुंदरता जैसी कोई विशेषता आ जाए, तो वह खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है। उसमें श्रेष्ठता का अभिमान आ जाता है। फिर वह चाहता है कि सभी मनुष्य उसे श्रेष्ठ समझते हुए आदर-सत्कार करें। ऐसा न हो तो उसे दुख होता है, और वह उसे अपना अपमान समझते हुए समय आने पर अपने अपमान का बदला लेने का विचार करता है। यह आध्यात्मिक सोच ही हमारे वर्तमान जीवन एवं पारलौकिक जीवन दोनों में सार्थक होगा।    
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