शिल्पांचल में भी मनाई गई विजया दशमी, नम आंखों से दी गई मां दुर्गा को विदाई
आसनसोल । बंगाल सहित पूर्वी भारत में मान्यता है कि षष्ठी के दिन मां दुर्गा अपने बच्चों के साथ अपने पिता के घर आती है और मायके में चार दिनों के प्रवास के बाद वह अपने पति के घर लौट जाती है। यही वजह है कि मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन कर दिया जाता है। शुक्रवार को आसनसोल सहित शिल्पांचल के विभिन्न पूजा पंडालों में दर्शनार्थी पंहुचे और आंखों में नमीं तथा होठों पर आसछे बछर आबार होबे यानी अगले साल मां फिर से धरती पर लौटेंगी और ऐसे ही धूमधाम से उनकी पूजा की गई। इन नारों के साथ मां को विदाई दी गई। मां के मनोहारी रुप के दर्शन करने और उनको इस साल के लिए अंतिम बार प्रणाम करने महिलाएं और पुरुष श्रद्धालु पंडालों में जुटे। विवाहिता महिलाएं मां के चरणों में सिंदुर लगातीं हैं फिर उसी सिंदुर से एक दुसरे को भी रंग देती हैं। इसे सिंदुर खेला कहा जाता है। हालाकि पिछले साल की तरह इस साल भी राज्य सरकार और उच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए कोरोना नियमों के कारण सिंदुर खेला का आयोजन का मनाही किया गया था। लेकिन इससे भक्तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं थी । ढाक की धुनपर थिरकते हुए सभी ने मां को विदाई दी। विजया दशमी का पर्व कमोबेश पूरे भारत में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे बुराई पर अच्छाई के विजय दिवस के रुप में मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार शुक्रवार ही के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका के अधीश्वर रावण पर विजय प्राप्त की थी। इसी वजह से उत्तर भारत में रामनवमी के दौरान जारी रामलीला का समापन होता है और बुराई पर अच्छाई के विजय के रुप में श्रीराम द्वारा रावण वध मंचस्थ किया जाता है। भारत के कई क्षेत्रों में बुराई के नाश को दर्शाते हुए प्रतीकात्मक रूप से रावण दहन किया जाता है।