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भारत की आन-बान और शान के लिए गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों ने अपना बलिदान दिया – सरदार हरपाल सिंह जोहल

रानीगंज । तखत श्री हरमंदिर साहिब पटना मैनेजिंग कमेटी के सदस्य एवं बर्नपुर। बाबा दीप सिंह ध्रुव डांगाल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष सरदार हरपाल सिंह जोहल ने कहा कि भारत की आन-बान और शान के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों साहिबजादों बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह, बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और उनकी दादी माता गुजर कौर ने अपना बलिदान दिया। मुगलिया हुकूमत के जुल्मों सितम के खिलाफ लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर करने वाले गुरु गोबिंद सिंह के चारों साहिबजादों और दादी माता गुजर कौर की शहादत को शत-शत नमन है। केसगढ़ का क़िला छोड़ने के बाद सरसा नदी पर जब गुरु गोबिंद सिंह का परिवार जुदा हो रहा था तो एक ओर जहां बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ चले गए वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह माता गुजरी जी के साथ रह गए। अजीत सिंह और जुझार सिंह मुगलों के साथ युद्ध करते हुए शहीद हुए। गुरुवाणी की पंक्ति ‘सूरा सो पहचानिए, जो लरै दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरै, कबहू न छाडे केत’ को चरितार्थ किया। माता गुजरी और दोनों साहिबजादों को मुगलों ने यातना देने के लिए जाड़े में तीन दिन और दो रातें ठंडे बुर्ज में रखा था। इन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम स्वीकार नहीं करने के कारण जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया। उनकी दादी मां गुजर कौर अपने पोतों की जुदाई सहन नहीं कर सकी और उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए। साहिबजादों और माता गुजरी के पार्थिव शरीर के अंतिम संस्कार के लिए मुगल कोई स्थान नहीं दे रहे थे। तब दीवान टोडरमल ने मुगलों से इनके संस्कार के लिए जगह मांगी तो उन्होंने जमीन पर सोने की मोहरें बिछाकर क़ीमत देने के बदले जमीन देना स्वीकार किया। इस पर दीवान टोडरमल ने हजारों सोने की मोहरों को बिछाकर दुनियां की सबसे कीमती जमीन खरीदी और तीनों का अंतिम संस्कार फतेहगढ़ साहिब में किया था। इस तरह देश और धर्म की रक्षा करते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का सारा परिवार शहीद हो गया। गुरु गोबिंद सिंह के बड़े साहिबजादें बाबा अजीत सिंह और जुझार सिंह चमकौर की जंग में मुगलों से लड़ते हुए 22 दिसम्बर 1704 को उस समय शहीद हो गए थे, जब बाबा अजीत सिंह की उम्र मात्र 17 साल और बाबा जुझार सिंह की उम्र केवल 13 साल ही थी। सरहिंद के सूबेदार वज़ीर खान ने गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को 27 दिसम्बर 1704 को उस समय जिंदा दीवारों में चिनवा दिया था जब उनकी उम्र केवल 8 और 5 साल ही थी। इंसानियत की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले चारों साहिबजादों और माता गूजरी जी की शहादत को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। गुरुजी के चार साहिबजादों और माता गुजरी जी की शहादत को नमन करने के लिए हर साल शहीदी जोड़ मेला श्री फतेहगढ़ साहिब (पंजाब) में लगता है। दूर दराज से संगत शहीदी दिवस में शीश नमन करने के लिए पहुंचती है।

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