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शिव महापुराण कथा में छठवें दिन 12 ज्योतिर्लिंग के नामकरण और महता पर हुआ कथावाचन

आसनसोल । नारायणी महिला शक्ति समिति द्वारा आसनसोल के रानीसती दादी मंदिर में 18 से 24 जुलाई तक श्री शिव महापुराण कथा का आयोजन किया गया है। कथा के छठवें दिन रविवार कथावाचक पंडित संजय जी शास्त्री ने कहा कि आदि योगी कहे जाने वाले भगवान शिव की पूजा और लिंग पूजा का प्रचलन आज से ही नहीं बल्कि सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु सभ्यता के जमाने से चला रहा है। इतिहास की माने तो मेलूहा नाम की जगह से भगवान शिव और उनकी लिंग पूजा का प्रचलन शुरू हुआ, जो बाद में वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल से लेकर आज तक चला रहा है। भगवान भोलेनाथ में आस्था रखने वाले भक्तों के लिए पूरे भारत के कोने-कोने में भगवान शिव के कई मंदिर हैं, जहां भगवान शिव की और शिवलिंग की पूजा होती है। वहीं पूरे देश में केवल 12 ऐसे स्थान हैं, जहां भगवान स्वयं ज्योति पुंज रूप में विद्यमान है। ऐसे स्थान ज्योतिर्लिंग कहे जाते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जितना महत्व शिवलिंग पूजा का है, उससे कहीं अधिक महत्व ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का है। ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से प्राणियों के जन्मों जन्म के पाप कट जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जहां-जहां भगवान शिव प्रकट हुए, वहां ज्योतिर्लिंग बन गए। भगवान शिव के भक्तों के लिए 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करना किसी स्वप्न से कम नहीं है। मौके पर शशि अग्रवाल, मंजू शर्मा, पुष्पा माखरिया, मीरा खेमानी, सुशीला अग्रवाल, पिंकी अग्रवाल, प्रेमा अग्रवाल, आशा गाड़ीवान, सुलोचना अग्रवाल, सियाराम अग्रवाल, महेश शर्मा, एसएन दारुक, नरेश अग्रवाल, कृष्णलाल अग्रवाल, मोनू अग्रवाल, राहुल माखारिया सहित पूरे समिति के सदस्य मौजूद थे।
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