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निर्बाध कोयला तस्करी के लिए  उपयोग होता है ‘डिस्को पेपर’ 

आसनसोल । रूट तय हो गया। हालांकि उसी मार्ग पर कोई दैनिक यात्रा नहीं थी। अवैध सिंडिकेट द्वारा कोयले की तस्करी को सुविधाजनक बनाने के लिए मार्ग बदल दिए गए। आते-जाते समय पुलिसकर्मियों का एक समूह कोयला वाहनों को एक तरह का फर्जी चालान और कोड नंबर दिखाकर पास कराता था। इस प्रक्रिया को सिंडिकेट की भाषा में ‘डिस्को पेपर’ कहा जाता था। सीबीआई ने आरोप पत्र में बताया है कि पुलिस का यह हिस्सा इस मदद के लिए अनूप माजी उर्फ ​​लाला के सिंडिकेट से आर्थिक लाभ ले रहा था। जांचकर्ताओं के अनुसार, लाला सिंडिकेट मुख्य रूप से चार मार्गों से कोयले की तस्करी करता था। सबसे महत्वपूर्ण मार्ग आसनसोल-रानीगंज से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 19 के साथ धनबाद तक है, जो डबुरडीही चेकपोस्ट से होकर गुजरता है, वहां से उत्तर प्रदेश के वाराणसी, बिहार के देहेरी मंडी के अलावा झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों तक जाता है। दूसरा मार्ग रानीगंज से बांकुरा और पुरुलिया होते हुए चांडिल, रांची, रामनगर, हज़ारीबाग़ होते हुए उत्तर प्रदेश तक है। दूसरा मार्ग, बीरभूम से नाला, दुमका, भागलपुर और आसपास के क्षेत्रों तक। चौथा मार्ग, आसनसोल से बिहार रोड, मिहिजाम, जामताड़ा और आसपास के इलाकों से होते हुए रूपनारायणपुर तक। लेकिन सिंडिकेट द्वारा इस रास्ते का ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया गया। जांचकर्ताओं ने आरोप लगाया कि राज्य में बीरभूम, हुगली, दक्षिण और उत्तर 24 परगना के माध्यम से कोयले की तस्करी की गई थी। इस कोयले की तस्करी के लिए एक प्रकार के जाली कागज का इस्तेमाल किया जाता था। इसके साथ 10, 50 या 100 रुपया की एक प्रति (फोटोकॉपी) संलग्न की जाती थी। इस प्रक्रिया को ‘डिस्को पेपर’ कहा जाता था। जांच करने पर सीबीआई अधिकारियों को पता चला कि सिंडिकेट का ‘कोड नंबर’ हर दिन एक निश्चित रकम का ‘सीरियल नंबर’ होता था। बिल की एक प्रति, जिसे सीरियल नंबर कोड के रूप में नामित किया गया था, कोयला ट्रक ड्राइवरों को दी गई थी। सड़कों पर कुछ पुलिसकर्मियों को ‘डिस्को पेपर’ की प्रतियां और पैसे के सीरियल नंबर भी दिए गए। इसे दिखाकर कोयला ट्रक चालकों को छूट मिलती थी। जांच में पता चला कि यह फर्जी पेपर झारखंड के निरसा और मुगमा इलाके में तैयार किया गया था।

ये सारा चोरी का कोयला कौन खरीदते हैं?

जांचकर्ताओं को पता चला है कि मुख्य रूप से ईंट भट्टे, रिफैक्ट्री उद्योग, छोटे इस्पात संयंत्र, स्पंज आयरन कारखाने लाला सिंडिकेट के कोयले के मुख्य खरीदार थे। जांच के दौरान सीबीआई ने पश्चिम बंगाल और झारखंड में ऐसे करीब 20 संगठनों पर छापेमारी की। आसनसोल की विशेष सीबीआई अदालत में दायर पहली चार्जशीट में ऐसे लगभग 15 फैक्ट्री मालिकों के नाम शामिल हैं। वे अब जमानत पर बाहर हैं। सीबीआई को पता चला है कि सरकारी कोयला कानूनी नीलामी के जरिये खरीदना पड़ता है। कीमत गिरकर लगभग 8,500 से 11,000 रुपया प्रति टन हो गई। लेकिन अवैध कोयले के मामले में, यदि कीमत बहुत अधिक है, तो ढाई से साढ़े तीन हजार रुपया। इसलिए कुछ फैक्ट्री मालिक उस कोयले की ओर रुख करते हैं। लेकिन कारोबार को ‘सफेद’ बनाए रखने के लिए वे नीलामी में जरूरत से कम कोयला खरीदते थे। आरोपियों ने सीबीआई जांच में लगाए गए आरोपों का जवाब नहीं दिया। लाला ने 14 मई को आसनसोल में विशेष सीबीआई अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और जमानत मिलने के बाद बिना एक शब्द कहे अदालत परिसर से चला गया।

 
 
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