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इस सदी में विलुप्त हो जाएंगे गौरैया-कौवे जैसे 10 लाख जीव, क्या इंसानों के रहने लायक बचेगी धरती?


दिल्ली । देश और दुनिया में जैव विविधता बेहद तेजी से खत्म हो रही है। हम अपने आसपास ही ऐसे कई जीवों को याद कर सकते हैं जो हाल के वर्षों तक बहुतायत में थे लेकिन वे अब नहीं दिखते हैं। इन्हीं जीवों में शामिल है गौरैया चिड़िया। ये पक्षी कुछ ही दशक पहले तक हमारे घर आंगन में चहचहाते थे लेकिन अब नहीं के बारबर दिखते हैं। कौवों की भी ऐसी स्थिति है। अब वे भी बेहद कम या न के बराबर दिखते हैं। दरअसल, ऐसा केवल हमारे यहां नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हो रहा है। एक रिपोर्टे मुताबिक धरती पर जीवों की 90 लाख प्रजातियां और इनमें से 10 लाख प्रजातियों के इसी सदी में विलुप्त हो जाने का खतरा है। इसी महीने आयोजित संयुक्त राष्ट्र के 15वें जैव विविधता सम्मेलन (सीओपी15) में इन बातों पर चिंता जताई गई है। इस सम्मेलन में पारित जैव विविधता पर ‘कुनमिंग घोषणा पत्र’ की शुरुआत कुछ इस तरह की गई है- ‘जैव विविधता को सुधार की राह पर लाना इस दशक की एक बड़ी चुनौती है।’ लेकिन सवाल उठ रहा है कि अगर धरती से इसी तरह जीव विलुप्त होते रहे तो क्या यह धरती इंसानों के लायक रहेगी।

जीवों को बचाने के लिए क्या हो रहा है
इस ऑनलाइन सम्मेलन का मकसद प्रकृति संबंधी नए लक्ष्यों के संबंध में दुनियाभर की सरकारों के बीच सहमति बनाना था। ये लक्ष्य असफल आईची लक्ष्यों का स्थान लेंगे।इस ऑनलाइन आयोजन के बाद अब जनवरी 2022 में जिनेवा में एक बैठक होगी और ये वार्ताएं अप्रैल 2022 में चीन के कुनमिंग में औपचारिक रूप से समाप्त होंगी, जिसमें दुनिया आगामी दशक के लक्ष्यों के साथ 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता प्रारूप पर सहमति बनाएगी। दुनिया के अधिकतर देशों (196 देशों, जिनमें अमेरिका शामिल नहीं है) ने जैव विविधता सम्मेलन को वित्तीय मदद दी है. ये पृथ्वी पर जीवन की विविधता की रक्षा के लिए तैयार किए गए समझौते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जैव विविधता गंभीर रूप में कम हो रही है। इस संबंध में 2019 में एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पृथ्वी पर करीब 90 लाख प्रजातियों में से 10 लाख प्रजातियां इस सदी में विलुप्त जाएंगी।

जलवायु संकट और वायु प्रदूषण से जुड़ा है जैव विविधता संकट
वैश्विक संकटों पर अक्सर अलग-अलग चर्चा की जाती है।दुनिया जैव विविधता संकट, जलवायु संकट और वायु प्रदूषण संकट का सामना कर रही है, लेकिन वास्तव में ये सभी मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं। इन्हें अलग-अलग करके देखने से प्रजातियां और अंतत: मानवता पर इनके मिलकर पड़ने वाले प्रभाव नजरअंदाज हो जाते है। दुनिया 2010 तक जैव विविधता में कमी की दर पर अंकुश लगाने के लक्ष्य से चूक गई और फिर उसने 2020 के लिए 20 लक्ष्य निर्धारित किए। भले ही, इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन 20 में से अधिकांश लक्ष्य पूरे नहीं हुए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि देश जैव विविधता की कमी के वाहकों से निपटने में असफल रहे। ये प्रणालीगत चुनौतियां अर्थव्यवस्थाओं, नियामक प्रणालियों और कुछ लोगों के जीने के तरीके में बदलाव की मांग करती हैं।

वित्तीय मदद
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने विकासशील देशों में जैव विविधता की रक्षा संबंधी परियोजनाओं के लिए 1.5 अरब युआन (23 करोड़ 33 लाख डॉलर) के एक नए कुनमिंग जैव विविधता कोष की घोषणा की और जापान ने अपने जैव विविधता कोष को बढ़ाकर 1.8 अरब येन (एक करोड़ 70 लाख डॉलर) किया। इसके अलावा इस दौरान कई संकल्प भी लिए गए, जैसे कि यूरोपीय आयोग ने जैव विविधिता के लिए वित्तीय मदद को दोगुना करने की योजना बनाई है।

आगे क्या होगा?
ग्लासगो में आयोजित होने वाली सीओपी26 जलवायु वार्ता में जैव विविधता की रक्षा करने पर मुख्य रूप से वार्ता की जाएगी। यह महत्वपूर्ण है कि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता में कमी आपस में जुड़ी समस्याएं मानी जाती हैं, इसलिए जलवायु परिवर्तन संबंधी कदम जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकते है। जैविक फसलों को उगाने या कार्बन उत्सर्जन को कम करने के एकमात्र उद्देश्य से वनों का प्रबंधन करने का मतलब जैव विविधता वाले आवासों को बदलना हो सकता है। इसके विपरीत, बाढ़ को कम करने के लिए तटीय आवासों की रक्षा करने जैसे प्रकृति आधारित समाधान जैव विविधता की बहाली में मददगार हो सकते हैं।

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