लोकतंत्र के प्रति झूठी आस्था और संविधान का सहारा – अवनी भूषण दुबे
अंडाल। लोकतंत्र के प्रति झूठी आस्था और संविधान का सहारा। इस लेख के माध्यम से अवनी भूषण दुबे उन समस्त राजनीतिक दलों चाहे वह भाजपा, कांग्रेस या कोई भी क्षेत्रीय पार्टियां हो, उन्हें यह कहना चाहता हूं कि कौन सी ऐसी पार्टी है जिसमें अपराधिक छवि वाले व्यक्ति शामिल नहीं है। हर पार्टी एक गुंडे, अनपढ़ एवं मवालियों को संरक्षण देने का कार्य कर रहे हैं। वर्षों बीत जाते हैं। उन पर एक भी अपराध साबित नहीं होते हैं। जेल में रहते हुए भी वह एमपी, एमएलए का चुनाव जाते हैं। केवल संविधान का सहारा लेकर। उनके लिए शिक्षा का कोई मापदंड नहीं है। संविधान का सहारा लेकर। उनको हर जगह सम्मानित किया जाता है। संविधान का सहारा लेकर। कभी जाति का नाम देकर सम्मानित किया जाता है। संविधान का सहारा लेकर। कभी धर्म के रूप में उन्हें उचित सम्मान दिया जाता है। संविधान का सहारा लेकर। वह इच्छा अनुसार किसी भी पार्टी में जा सकते हैं। संविधान का सहारा लेकर। वे अनपढ़, पढ़े लिखे पर प्रशासन कर सकते हैं। संविधान का सहारा लेकर। वे भोले भाले जनता को कुत्ते की तरह इस्तेमाल करते हैं। जनता में जनता के पैसों का दुरुपयोग करते हैं और अपना विज्ञापन छपवाते हैं, संविधान का सहारा लेकर। उनके अपने बाल बच्चों को धनवान बनाते हैं, राजनीति में अपने ही बाल बच्चों को फिर खड़ा करते हैं। संविधान का सहारा लेकर। हमारा संविधान इतना लचीला है कि कोई भी व्यक्ति चाहे जिस क्षेत्र का हो वह राजनीति में आ सकता है। संविधान का सहारा लेकर। क्या बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी ने यही सोचकर संविधान बनाया था ?उन्होंने तात्कालिक सामाजिक राष्ट्रीय अवस्था को देखते हुए संविधान बनाया था। लेकिन आज सभी लोग उनका दुरुपयोग कर रहे हैं। आज एसटी, एससी ,ओबीसी, जनरल सभी बोलता है। बाबा साहब मेरे हैं। सभी उनका जन्मदिन मनाते हैं। दिल में झांक कर देखें क्या वे उनके बनाए गए संविधान को सही अर्थों में प्रयोग करते हैं, जी नहीं। किसी में राष्ट्रवाद नहीं दिखता। वह एक महान व्यक्तित्व थे। एक बहुत बड़े राष्ट्रवादी थी। आज यदि वे जिंदा होते हैं और संविधान की यह धज्जियां उड़ते देखते तो क्या वे चुप रहते ? अतः समय आ गया है कि हम खुद में झांक कर देखें, सिर्फ राजनेताओं को गाली देने से संविधान नहीं सुधर जाता, बल्कि हम भारतवासी चाहे जिस कार्य में हो, समाज निर्माण या अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हो तभी राष्ट्र निर्माण संभव है। यह लेख मैंने राष्ट्रहित में लिखा और आशा करता हूं कि कोई भी व्यक्ति संविधान के कमजोर नसों को पकड़कर अपना लाभ न सोचे।