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राज्य की प्रशासनिक सेवा की परीक्षाओं में हिन्दी, उर्दू और संथाली भाषा को फिर से जगह देकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सराहनीय और अनुकरणीय कार्य किया – सृंजय मिश्रा

आसनसोल । पश्चिम बंगाल राज्य की प्रशासनिक सेवा की परीक्षाओं में हिन्दी, उर्दू और संथाली भाषा को फिर से जगह देकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सराहनीय और अनुकरणीय कार्य किया है। यह बिलकुल सही और लोकतांत्रिक निर्णय है। ममता बनर्जी की छवि एक संघर्षधर्मी नेतृ की रही है, उन्हें धर्म, जाति, नस्ल, क्षेत्र और भाषा की संकीर्णता से ऊपर उठा हुआ राजनीतिक व्यक्तित्व माना जाता रहा है। उक्त बातें साहित्यकार सृंजय मिश्रा ने पत्रकारों से कही। उन्होंने पश्चिम बंगाल में वास करनेवाले विभिन्न भाषाभाषियों को अपने इसी गुण के चलते अपने से जोड़ा भी था, लेकिन बीच में न जाने ऐसी कौन-सी विषाक्त हवा चली कि उन्हें “बांग्ला पक्खो” वालों ने गुमराह कर दिया था, जिसके चलते इस प्रांत के सामग्रिक उन्नयन में हिन्दीभाषी, उर्दूभाषी और संथालीभाषी छात्र अपना योगदान कर पाने से प्रतिबंधित कर दिये गये थे। मुख्यमंत्री ने हिन्दीभाषा ( और अन्य भाषाओं ) के लिए अबतक जो कुछ भी किया था, वह माटी में मिलने जा रहा था, लेकिन यह अति प्रसन्नता की बात है कि ममता बनर्जी ने उसे सँभाल लिया। अब इन सभी वंचित भाषाओं को बोलने वाले लोग इस प्रांत के विकास में पहले की भांँति अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान कर पायेंगे। इसके लिए हिन्दी, उर्दू, संथाली समेत वैसे बांग्लाभाषी समुदाय भी, जिसने हिन्दी को प्रथम भाषा के रूप में वरण किया था। मुख्यमंत्री को हृदय से आभार और धन्यवाद ज्ञापित कर रहा है। कोई भी राज्य या देश तभी वास्तविक तरक़्क़ी कर पाता है, जब वहाँ के सभी निवासियों को बिना किसी भेदभाव के आगे बढ़ने का समान अवसर प्रदान किया जाता है। ममता बनर्जी एक दूरदर्शी नेतृ हैं, उन्होंने इस बात को अपने अनुभवों से समझ लिया है, जिसके कारण उन्होंने सबको साथ लेकर चलने का यह साहसिक निर्णय लिया है। इस प्रसंग में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जनपक्षीय पत्रकारिता करनेवाले हमारी हिन्दी और उर्दू के समाचारपत्रों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका भी अति महत्त्वपूर्ण रही है। प्रायः सभी अख़बारों और चैनलों ने शुरू से ही सही तरीक़े से उचित पटल पर इस मुद्दे को लगातार उठाते रहने का काम किया है, जिसका नतीजा आज सबके सामने दिख भी गया। हम उन सभी समाचारपत्रों और चैनलों के कृतज्ञ हैं, जिन्होंने जनता की जनतांत्रिक आवाज़ को सरकार तक पहुँचाने में सहयोगी भूमिका निभायी है। इसे किसी की जीत और हार की भावना से नहीं, बल्कि सरकार की अपनी जनता से प्रेम की भावना से देखा जाना चाहिए।
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