आसनसोल । दीदी चिंता कीजिए उचित एवं अनुचित वातावरण के लिए। आज आपने राजस्थानी उद्योगपति, मारवाड़ी व्यवसायी, बिहारी एवं बहुत से वर्गों का जातिकरण कर दिया है। मेरा भारत महान इसे लिखा एवं बोला नहीं जा सकता। यह शत् प्रतिशत आस्था का प्रतीक है। आपने मारवाड़ी, बिहारी एवं राजस्थानी उद्योगपतियों से स्पष्टीकरण मांगा है। यह कुछ न कुछ पश्चिम बंगाल की भूमि को आज के दौर में शर्मसार कर रही है। राजस्थानी, मारवाड़ी एवं बिहारी समाज का असली परिचय यह है कि वह जिस स्थान एवं प्रदेश में जाते हैं या रहते हैं। उसे ही अपनी, जन्मभूमि एवं कर्मभूमि मानते हैं एवं उस धरती की माटी को अपने मातृभूमि के रूप में स्वीकार करते हैं।उक्त बाते राष्ट्र प्रेमी सुरेन जालान ने कही। उन्होंने कहा कि चाहे वह भारत का कोई भी राज्य हो या विदेशों का कोई सा भी स्थान हो। आज 80 फीसदी राजस्थानी, मारवाड़ी एवं बिहारी जो जिस स्थान पर है। उनके सगे संबंधी, उनकी जमा पूंजी, उनकी चल-अचल संपत्ति एवं खासतौर से उनके वैवाहिक स्थल भी इस ही प्रदेश में होते हैं एवं परमार्थ सेवा की भावना भी इसी प्रदेश के लिए ही होती है। उदाहरण के रूप में जी.डी बिरला स्कूल, बिरला मंदिर, बिरला म्यूजियम, सेठ सूरजमल नागरमल जालान, सेंट्रल एवेन्यू स्थित राम मंदिर, नौपानी हाई स्कूल, काली कबंली वाले का हेड ऑफिस, सत्यनारायण मंदिर, सांवरा सेठ का मंदिर, मारवाड़ी रिलीफ़ सोसायटी, श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति, आनंदलोक, आदिवासी वन कल्याण आश्रम इत्यादि। बंगाल के बड़े शहरों में ऐसी सुविधाएं हैं। जिन शहरों के नाम कुछ इस प्रकार हैं। सिलीगुड़ी, बांकुड़ा, पुरूलिया, वर्धमान, आसनसोल, दुर्गापुर कुचबिहार, मालदा, जंगीपुर, बालूरघाट, दार्जिलिंग, अयोध्या पहाड़, दुबजुडी, बादंवान, कुल्टी, बराकर रानीगंज, मेझिया, रघुनाथपुर, काशीपुर बहरमपुर, कृष्णानगर, नवदीप, बारासात, गोविंद भवन महात्मा गांधी रोड कोलकाता यह तो केवल उदाहरण है। पूरी पश्चिम बंगाल में राजस्थानी, मारवाड़ी एवं बिहारियों का सदैव से योगदान रहा है एवं रहेगा। जहां से राजस्थानी, मारवाड़ी एवं बिहारियों की उत्पत्ति हुई है। उस जगह से उनका संबंध केवल उनके देवी देवताओं एवं देशाटन के लिए ही होता है।
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