आसनसोल । मातृ दिवस के दिन जब पूरा देश माँ की ममता और त्याग का गुणगान कर रहा था, उसी दिन एक असहाय बुज़ुर्ग माँ दो वक्त की रोटी की तलाश में मोहल्ले की सड़कों पर भटकती नजर आई। फटे पुराने कपड़े, टुटा झोला, कुछ टूटी-फूटी कटोरियाँ और थकी हुई आंखों में उम्मीद की चमक लिए वह मोहल्ले के दो छोटे बच्चों का हाथ थामे छोटे बेटे प्रह्लाद की दुकान की ओर चली, इस उम्मीद में कि शायद वहीं से रोटी का एक टुकड़ा मिल जाए। पिछले 15 वर्षों से वह बड़े बेटे आशिष के घर रह रही थीं, लेकिन वहां उन्हें न सम्मान मिला न भोजन। बुजुर्ग माँ ने राह चलते लोगों से अपनी व्यथा साझा की — “बड़ा बेटा और बहू खाने को नहीं देते, ऊपर से ताने और अपमान देते हैं।” यह दृश्य देखकर मोहल्ले के लोगों का दिल दहल उठा। जब समाज के कुछ सजग नागरिकों ने छोटे बेटे प्रह्लाद से माँ की स्थिति को लेकर सवाल किए, तो उसने भी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की। विवाद और समझाइश के बीच जब यह बात बड़े बेटे आशिष तक पहुँची, तो थोड़ी ही देर में उसके दोनों बेटे आकर दादी को अपने घर वापस ले गए। समाज के कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने उन्हें माँ की सेवा का महत्व समझाया और यह चेतावनी दी कि अगर भविष्य में दोबारा ऐसा हुआ तो कानूनी कार्यवाही की जाएगी और माँ को न्याय दिलाया जाएगा।
यह घटना मातृ दिवस पर एक कड़वा सवाल छोड़ गई —
“जिस माँ ने बेटों को चलना सिखाया, आज वही माँ रोटी के लिए क्यों भटक रही है?”