विज्ञापन देने की इच्छा हो तो केवल भूतपूर्व उद्योगपति या व्यापारी वर्ग के बारे में ही दे – सुरेन जालान
आसनसोल । आजकल हमारी दिल्ली के अरविंद केजरीवाल की सरकार द्वारा उनके ब्रांड एंबेसडर मनोज सिसोदिया खूब जोरों पर विज्ञापन दे रहे हैं। युवाओं को नौकरी करने वाला नहीं नौकरी देने वाला बनना है मगर उन्हें मालूम नहीं हमारा समाज खासतौर से राजस्थान एवं हरियाणा के युवाए जो पूर्व में आपके विज्ञापन के बिना भी नौकरी देने वाले ही बने थे। किंतु वर्ष 1970 के दशक के बाद नौकरी देने वालों की क्या दशा हुई थी। उक्त बातें आसनसोल के सामजसेवी सह व्यवसायी सुरेन जालान ने कही। उन्होंने कहा कि ट्रेड यूनियन मील मालिकों के बच्चे का अपरहण, नेताओं की व्यक्तिगत कर वसूली लाइसेंस पर लाइसेंस एवं उद्योग या व्यापार चले या न चले। कर वसूली चलनी चाहिए मगर एक बार नौकरी दे दी गई तो नौकरी देने वालों का परिवार इन हुकूमतों का शिकार होती रहती है। उन्होंने कहा कि इसलिए उनकी युवा पीढ़ी अपने बुजुर्गों का दर्द देख कर नौकरी करने के बारे में ही सोच रहे हैं, चाहे वह भारतवर्ष में हो, यूके में हो, यूएसए में हो या फिर कनाडा में मिडलिस्ट जैसे देशों में नौकरी करने के लिए वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। अपने बुजुर्गों पर हुए जुल्मो को देख कर वह अपने भविष्य की नौकरी को सुरक्षित समझ रहे हैं। उद्योगपति या व्यापारी वर्ग कि यदि बदहाली हुई हैं तो केवल डकैती के द्वारा, नवीनीकरण के द्वारा, नेताओं की ट्रेड यूनियन के मार के द्वारा, बैंक करप्टो द्वारा। उन्होंने कहा कि उद्योगपति एवं उनके बच्चे अपने कर्मचारियों को ऊंची नौकरी देते थे। आज उनके बच्चों के अपने घर, कारखाने, दुकान, बैंकों ने नीलाम कर दिया। आज वह किराए के मकान में आज कोलकाता, कल दिल्ली, परसों मुंबई फिर बैंगलोर दर-दर घूम रहे हैं। इसका कारण है, उद्योगपति व्यापारी के बच्चे अपने पूर्वजों से नौकरी देने की शिक्षा ग्रहण की थी। नौकरी करने की नहीं। किंतु आप लोगों द्वारा किया हुआ जुल्म नौकरी देने वालों से अच्छा है, नौकरी करना। नौकरी करने वाले को न इनकम टैक्स की रेड, न ट्रेड यूनियन की मार, सरकार की सभी फैसिलिटी अल्पसंख्यक के नाम पर, जातिवाद के नाम पर, आय कम होने के कारण सीमित परिवार की नीति एवं देशहित और समाज की बात को भूलते जा रहे हैं। केजरीवाल सरकार से निवेदन है। आगे पीछे का इतिहास समझकर ही विज्ञापन को राष्ट्रहित के लिए ही देना होगा। नौकरी देने वाले व्यापारी एवं उद्योगपतियों के कर को अपनी पार्टी के लिए एवं अपने व्यक्तिगत कोष को बढ़ाने के लिए हमें विस्तार वादी नीति को खत्म करना होगा। सभी राजनीतिक दलों को मुफ्त की स्कीम बंद करनी होगी एवं स्वाभिमान बनाने की स्कीम देनी होगी। चाहे वह 2 घंटे का ही स्वाभिमान हो। क्या आप यह बता सकते हैं भूतकाल में किसी भी नौकरी देने वाले व्यापारी या उद्योगपतियों का कर या कर्ज माफ हुआ हो।क्या एक भी उदाहरण आपके पास है। यहां तक देखा गया है कि नौकरी देने वाले उद्योगपति या व्यापारी किसी गंभीर बीमारी हो जाने के बाद। उनके पार्थिव शरीर को बिना बिल चुकाये नहीं ले जाने देते हैं। जबकि कुछ उद्योगपति या व्यापारी का सब कुछ बीमारी में ही खत्म हो जाता है। कोई भी सरकार या नेता आंसू पोंछने तक नहीं आते हैं। आते हैं, तो केवल उद्योगपति एवं व्यापारी वर्ग के संगठन एवं रिश्तेदार। अगर विज्ञापन देने की इच्छा हो तो केवल भूतपूर्व उद्योगपति या व्यापारी वर्ग के बारे में ही दे एवं वर्तमान में इस समस्या से उद्योग एवं व्यापार के उलझनों को समझकर नौकरी देने वालों के बच्चों की बात करें।