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शिल्पांचल-कोयलांचल आसनसोल-धनबाद के हीरा हैं संजीव

संजीव को मिला वर्ष 2023 का साहित्य अकादमी पुरस्कार

आसनसोल । कथाकार संजीव को इस वर्ष 2023 का साहित्य अकादमी पुरस्कार उनके उपन्यास ‘मुझे पहचानो’ पर दिया गया है। संजीव का समग्र लेखन इतना विपुल है कि वे किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं हैं। वैसे उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, लेकिन हिन्दी साहित्य के पाठक इस बात की प्रतीक्षा भी कर रहे थे कि संजीव को अबतक साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत क्यों नहीं किया गया है! कहना अनुचित नहीं होगा कि पिछले दिनों कुछ ऐसे लोगों को भी पुरस्कृत किया गया है जिनका साहित्यिक अवदान संजीव के कर्तृत्व की तुलना में बहुत कमतर है। सच कहूंँ तो साहित्य अकादमी अबतक संजीव जैसे हमारे समाज एवं समय के लिए ज़रूरी, ज़िम्मेदार और प्रतिबद्ध लेखक की उपेक्षा ही करती आ रही थी, किन्तु प्रसन्नता की बात है कि देर से ही सही अकादमी की नींद खुली और उसकी दृष्टि संजीव जैसे निरंतर स्तरीय लेखन करनेवाले साहित्यकार पर पड़ी तथा उन्हें पुरस्कृत करने का निर्णय लिया। पुरस्कृत उपन्यास ‘मुझे पहचानो’ की कथाभूमि के बारे में इस अंचल के समादृत साहित्यकार मेरे मित्र रविशंकर सिंह का कहना है कि “छत्तीसगढ़ की भूमि, राजे-रजवाड़े की भूमि, हीरा उत्खनन करनेवाले व्यापारियों की पृष्ठभूमि पर रचित उपन्यास ‘मुझे पहचानो’ में एक दलित महिला का विवाह ज़मींदार लाल साहब से हो जाता है। वह महिला अपने स्तर से राजकाज के विकास में पूर्ण योगदान देती है, लेकिन जब वह विधवा हो जाती है, तो लाल साहब की अन्य पत्नियों के बजाय उस दलित महिला को सती बनाने का उपक्रम किया जाता है, लेकिन वह किसी प्रकार से बचकर निकल जाती है। कर्मकांडों को धता बतानेवाली कहानी ऊपरी तौर पर सीधी और सपाट सी दिखती है। इसकी एक अन्तर्धारा भी है , युग-युग से दलित, वंचित वर्ग की महिला किस तरह से सतायी गयी है , आज वह महिला ख़ुद अपने अस्तित्व, अपनी पहचान की बात कर रही है।” संजीव आजकल भले दिल्ली में रहते हों, परन्तु हमारे लिए यह विशेष गौरव का पल है कि संजीव आसनसोल-धनबाद के इसी शिल्पांचल-कोयलांचल के हीरा हैं। उनकी जड़ें आसनसोल-धनबाद की माटी में रोपित हुई थीं, जो आज एक विशाल वृक्ष की तरह नज़र आते हैं। संजीव का कर्मक्षेत्र कुलटी रहा है, कुलटी के ही इस्पात कारख़ाने में उन्होंने रसायनज्ञ के रूप में अपनी सेवा दी थी। यह इस माटी की ही विशेषता कही जायेगी कि विज्ञान से संबद्ध एक रसायनज्ञ आगे चलकर साहित्य के रसों का रचयिता रसायनज्ञ बन गया। संजीव एक ऐसे लेखक हैं, जो स्वयं लिखने के साथ-साथ अपने संपर्क में आनेवाले दूसरों को भी लेखक बनने के लिए उत्प्रेरित करते रहे हैं। इस अंचल में सर्जनरत अनेक लेखकों को उन्होंने एक कुशल उस्ताद की तरह निरंतर मार्गदर्शन किया है। उम्र के इस पड़ाव पर भी वे नितांत नये से नये लेखक को एक अभिभावक की तरह संरक्षण देते रहते हैं। यही कारण है कि उनको मिला यह पुरस्कार आसनसोल-धनबाद की इस ऊर्जाभूमि में सर्जनरत सभी रचनाकारों को स्वयं को मिला पुरस्कार जैसा लग रहा है। अकादमी पुरस्कार की सूचना मिलते ही इस ऊर्जाभूमि में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी है। हम संजीव जी को बधाई देने के साथ-साथ उनके स्वस्थ और सक्रिय रचनात्मक जीवन के लिए शुभकामना व्यक्त करते हैं।

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