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व्यक्ति अपना मूल्य समझे और विश्वास करे कि हम संसार के सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति है, तो वह हमेशा कार्यशील बना रहेगा – आचार्य श्री गौरव कृष्ण जी महाराज

आसनसोल । आसनसोल कन्यापुर हाई स्कूल के पास ज्योति जिम के सामने मैदान में भक्त ननी गोपाल मंडल, शांतरानी मंडल, जयदेव मंडल, शुकदेव मंडल, बुद्धदेव मंडल एवं पूरे मंडल परिवार की ओर से चल रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन कथा विश्राम एवं रुक्मणि विवाह और सुदामा चरित्र पर वृंदावन से आए प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य श्री गौरव कृष्ण जी महाराज ने कथा सुनाया। उन्होंने भक्तों को कहा कि अशान्त व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता। जीवन में कितना भी धन ऐश्वयं की सम्पन्नता हो लेकिन यदि मन में शान्ति नहीं है तो वह व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता। वहीं जिसके पास धन की कमी भले ही हों सुख सुविधाओं की कमी हो परन्तु उसका मन यदि शान्त है तो वह व्यक्ति वास्तव में परम सुखी है। यह हमेशा मानसिक असंतुलन से दूर रहेगा। कथा प्रसंग में परम भक्त सुदामा चरित्र पर प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री गौरव कृष्ण जी महाराज ने कहा कि श्रीसुदामा जी के जीवन में धन की कमी थी, निर्धनता थी। लेकिन वह स्वयं शान्त ही नहीं परमशान्त थे। इस लिये सुदामा जी हमेशा सुखी जीवन जी रहे थे। क्योंकि उनके पास ब्रह्म (प्रभुनाम) रूपी धन था। धन की तो उनके जीवन में न्यूनता थी परन्तु नाम धन की पूर्णता थी। हमेशा भाव से ओत प्रोत होकर प्रभु नाम में लीन रहते थे। उनके घर में वस्त्र आभूषण तो दूर अन्न का एक कण भी नहीं था। जिसे लेकर वो प्रभु श्री द्वारिका धीश के पास जा सकें। परन्तु सुदामा जी की धर्म पत्नी सुशीला के मन में इच्छा थी, मन में बहुत बड़ी भावना थी कि हमारे पति भगवान श्री द्वारिकाधीश जी के पास खाली हाथ न जायं। सुशीला जी चार घर गई और चार मुट्ठी चावल मांगकर लायी और वही चार मुट्ठी चावल को लेकर श्री सुदामा जी प्रभु श्री द्वारिका धीश जी के पास गये। और प्रभु ने उन चावलों का भोग बड़े ही भाव के साथ लगाया। उन भाव भक्ति चावलों का भोग लगाकर प्रभु ने यही कहा कि हमारा भक्त हमें भाव से पत्र पुष्प, फल अथवा जल ही अर्पण करता है, तो में उसे बड़े ही आदर के साथ स्वाकार करता हूँ। प्रभु ने चावल ग्रहण कर श्री सुदामा जी को अपार सम्पत्ति प्रदान कर दी। आर्चाय श्री ने इस पावन सुदामा प्रसंग पर सार तत्व बताते हुए समझाया कि व्यक्ति अपना मूल्य समझे और विश्वास करे कि हम संसार के सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति है। तो वह हमेशा कार्यशील बना रहेगा। क्योंकि समाज में सम्मान अमीरी से नहीं इमानदारी और सज्जनता से प्राप्त होता है। आज विशेष महोत्सव के रूप में फूल होली महोत्सव विशेष धूम धाम से मनाया गया। जिसमें आचार्य श्री द्वारा “होली खेल रहे बांके बिहारी” बांके बिहारी को देख छटा मेरे मन है, गयो लटा-पटा आदि भजनों को बड़े ही भाव के साथ गुन-गुनाया गया। जिससे हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने फूल होली महोत्सव का आनन्द प्राप्त किया। सम्पूर्ण कथा प्रांगण श्री राधा कृष्ण मय हो गया।

सामाजिक संदेश: कथा ने सामाजिक सेवा और मदद की भावना को मजबूत किया। श्रोताओं ने इसे केवल धार्मिक कथा के रूप में नहीं बल्कि समाज के कमजोर वर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझने के अवसर के रूप में देखा। कथा में भगवान श्रीकृष्ण के माध्यम से संदेश दिया गया कि समाज में समृद्धि और सामंजस्य लाने के लिए सेवा का भाव होना आवश्यक है।

श्रोताओं की प्रतिक्रिया: श्रद्धालुओं ने कथा को एक प्रेरणादायक और समाजोपयोगी संदेश के रूप में लिया। स्थानीय समाजसेवी मीना रॉय ने कहा, “यह कथा हमें यह सिखाती है कि हमें समाज के जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।” एक अन्य श्रोता, रेनू पाण्डेय ने कहा, “सुदामा की तरह हमें भी अपने आसपास के लोगों की मदद करनी चाहिए, यह सच्ची भक्ति का रास्ता है।”

     
 
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