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ईमानदारी निष्ठा और अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण भाव होने से मनुष्य सफल व्यापारी या उद्योगपति बनता है – महेंद्र शर्मा

आसनसोल । कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो’ इस पंक्ति का मतलब है कि दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं होता। जो काम मुश्किल लगे, उसे धैर्य और सोच-समझकर करने पर सफलता मिलती है। राजस्थान के कुचामन इलाके के मूल निवासी स्वर्गीय छगन लाल शर्मा तथा सावित्री देवी के दो पुत्र महेंद्र शर्मा और सुरेंद्र शर्मा इसकी मिसाल है। इनके पिता एक छोटे व्यापारी थे जो बेहद कड़ी मेहनत से अपने परिवार को चला रहे थे। दोनों भाइयों ने शुरू से ही अपने पिता के संघर्ष को देखा और यह ठान लिया कि उनको आगे चलकर कुछ ऐसा करना है जिससे उनके परिवार को भविष्य उन परेशानियों का सामना न करना पड़े जो उन्होंने की हैं । दोनों भाइयों का जन्म कुचामन में हुआ लेकिन उन दोनों का पालन पोषण अपने ननिहाल पांचवा में हुआ। जैसे जैसे दोनों भाई बड़े होते गए दोनो के ही मन में कुछ बड़ा हासिल करने की इच्छा और भी प्रबल होती गई। इसी बीच छगनलाल शर्मा ने कई व्यापार शुरू किया। वह पश्चिम बंगाल के करीमपुर आए और जुट का व्यापार शुरू किया। लेकिन यहां पर भी उनको बड़ी कामयाबी नहीं मिली तो वह वापस कुचामन सिटी वापस चले गए। इसके बाद उन्होंने नमक का कारोबार शुरू किया और कई राज्यों में नमक की सप्लाई शुरू की। इसी बीच उनके बड़े बेटे महेंद्र शर्मा अपने ननिहाल पांचवा के राजकीय जवाहर विद्यालय से हायर सेकेंडरी पास कर चुके थे। उन्होंने अपने पिता को उनके व्यापार में मदद करने का फैसला लिया और वह भी व्यापार में आ गए। उन्होंने बनारस जाकर अपने व्यापार को आगे बढ़ने का फैसला लिया इसके बाद वह गुजरात के गांधीधाम गए और वहां पर उन्होंने नमक की फैक्ट्री लगाया। देखते ही देखते यह व्यापार फलने फूलने लगा और अंकुर नामक कंपनी का जन्म हुआ। इसके बाद शर्मा परिवार के कामयाबी का वह दौर शुरू हुआ जो अब तक जारी है। देखते ही देखते पूरे देश में अंकुर नमक के छह फैक्ट्रियां लगाई गई। आज अंकुर नमक विदेश में भी निर्यात किया जाता है। महेंद्र शर्मा ने आसनसोल को अपने कर्म क्षेत्र के रूप में चुना और यहां पर रहकर उन्होंने विभिन्न व्यवसाय में अपनी किस्मत आजमाई और अपने लगन और निष्ठा के बल पर हर एक व्यवसाय में कामयाबी हासिल की। इसके बाद वर्ष 1978 में उनके छोटे भाई सुरेंद्र शर्मा भी इस विद्यालय से हायर सेकेंडरी उत्तीर्ण होने के बाद व्यापार के क्षेत्र में आ गए। उसके बाद दोनों भाइयों ने मिलकर एक के बाद एक कामयाबी के नई इमारत का निर्माण की फैक्ट्री कोलकाता में पोर्ट ट्रस्ट की जमीन लीज लेकर वेयर हाउस का निर्माण पानी के जहाज निर्माण और उनके रखरखाव का व्यापार किया। उसके बाद आसनसोल, रानीगंज, दुर्गापुर और कोलकाता आदि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कंस्ट्रक्शन बिजनेस की शुरुआत की गई। दोनों भाइयों की मेहनत की वजह से हर एक व्यापार में उनको कामयाबी मिलती गई। शर्मा बंधुओं की मेहनत का ही नतीजा था दुर्गापुर में सरिया फैक्ट्री स्थापित किया गया। झारखंड में इथेनॉल की फैक्ट्री लगी। हाल ही में उनके द्वारा बांकुड़ा के कलिदासपुर में इथेनॉल फैक्ट्री की स्थापना हुई जहां पर प्रतिदिन 5 लाख लीटर एथेनॉल का उत्पादन होता है। इस बारे में महेंद्र शर्मा ने बताया कि बहुत जल्द बिहार के जमुई में वह एक और इथेनॉल की फैक्ट्री लगाने जा रहे हैं जो कि एशिया की सबसे बड़ी एथेनॉल फैक्ट्री होगी। जहां पर प्रतिदिन 15 लाख लीटर एथेनॉल का उत्पादन होगा। महेंद्र शर्मा ने बताया कि एथेनॉल उत्पादन के साथ वे अंकुर बायोकेम प्राइवेट लिमिटेड, अंकुर डिस्टलरीज प्राइवेट लिमिटेड, इस्पात उत्पादन के क्षेत्र में राजश्री आयरन प्राइवेट लिमिटेड, रियल एस्टेट के व्यापार में सीएलएम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, अंकुर निर्माण प्राइवेट लिमिटेड, अंकुर नमक के अलावा कोलकाता में पतंजलि के सुपर डिस्ट्रीब्यूटर है और पतंजलि के कई चिकित्सालयों का संचालन भी करते हैं। अपने जीवन के सफर के बारे में महेंद्र शर्मा ने बताया कि उनके पिता छगनलाल शर्मा यह कहा करते थे कि दुनिया में अगर सबसे बड़ा दुश्मन कोई है तो वह दरिद्रता है। इसलिए हर इंसान को यह कोशिश करनी चाहिए कि वह सही रास्ते पर चलकर अपनी मेहनत से अपने निष्ठा और लगन से गरीबी को दूर करने का प्रयास करे। वे संदेश दिया कि उन्होंने अपने पिता से मार्गदर्शन और बोरो से मिले संस्कारों के बल पर अपने भाई के साथ मिलकर व्यापार के क्षेत्र में कामयाबी हासिल की है। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की उन्होंने युवाओं का संदेश देते हुए कहा कि वह और उनके भाई जिन परिस्थितियों से उभर कर सामने आए हैं। वह किसी के साथ भी हो सकते हैं, लेकिन जरूरत है लगातार प्रयास करते रहने की। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षा निश्चित रूप से जरूरी है। लेकिन अगर किसी के माता-पिता आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं है कि वह अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवा सके तो बच्चों को चाहिए की प्राथमिक शिक्षा के बाद वह खुद कुछ ऐसा करने की सोच और उसे दिशा में प्रयास करे। ताकि वह एक सफल व्यापारी या उद्योगपति के रूप में प्रतिष्ठित हो सके। उन्होंने कहा कि एक कामयाब व्यापारी होने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। ईमानदारी निष्ठा और अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण भाव।
   

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