आसनसोल की बेटी का अदम्य साहस, बेटी ने बेटा का फर्ज निभाया
आसनसोल । आज हम मानव सभ्यता के उस दौर में हैं जहां बेटी और बेटे को एक समान समझा जाता है। आज की तारीख में एक बेटी हर वह काम कर सकती है और कर रही है जिसे कभी उसके बुते का समझा नहीं जाता था। लेकिन आज बेटियों ने सहस्राब्दीयों से चली आ रही धारणाओं को धत्ता बताते हुए जीवन की हर चुनौती को न सिर्फ ललकारा है बल्कि उसपर विजय भी हासिल की है।अगर सनातन समाज की बात करें तो माता पिता के अंतिम संस्कार का अधिकार या तो पुत्र या फिर परिवार के किसी पुरुष सदस्य को दिए जाने की परंपरा है। इसके पीछे दलिल यह है कि एक महिला शमशान के दर्द को झेल
नहीं पाएगी उसका कोमल हृदय टुट जाएगा। लेकिन शायद लोगों को यह नहीं पता एक महिला जो दर्द झेलकर एक नयी जिंदगी को जन्म दे सकती है। वह दुनिया में किसी भी दर्द को झेल सकती है। यही वजह है कि आज यानी 26 सितंबर को बेटी दिवस के रुप में मनाया जाता है। आज हम आपको बेटी दिवस पर एक ऐसी ही बेटी के बारे में बताएंगे जिसने अपने होसले से सबको चौंका दिया। आसनसोल के राम गुलाम सिंह रोड इलाके में रहने वाली शैलजा डागा ने वह कर दिखाया
जिसके बारे में जानकर आप उनको सलाम किए बिना नहीं रह सकते। आसनसोल के व्यवसायी सह समाजसेवी सुरेन जालान ने कहा कि दो दिन पहले यानी 24 सितम्बर को लंबी बीमारी के बाद शैलजा के पिता संतोष डागा की मौत हो गयी थी। शैलजा अपने माता पिता की एकमात्र बेटी है। ऐसे में परिवार के सामने यक्ष प्रश्न यह था कि दिवंगत संतोष डागा की मुखाग्नि और अंतिम संस्कार से जुड़े अन्य अनुष्ठानो को कौन पुरा करेगा? ऐसे में शैलजा ने अपने परिजनों को चौंकाते हुए यह जिम्मेदारी खुद निभाने की सोची। उन्होंने न सिर्फ संतोष डागा की अंतिम यात्रा में उनकी अर्थी को कंधा दिया बल्कि मुखाग्नि से लेकर सभी धार्मिक अनुष्ठानों का भी विधिवत पालन किया। शैलजा की सहेलियां उसके कार्य में मदद कर रही है। जब सुरेन जालान शैलजा से मिलने उनके घर गए तो इस युवती का आंतरिक बल देखकर वह विस्मित हो गए। उन्होंने शैलजा को कहा कि उनके लायक कोई सहायता की जरूरत हो तो बोल सकती है। शैलजा ने कहा कि पिछले चार सालों से उनके पिता बिमार थे। तब वह अपने ट्युशन से रुपया अर्जन कर अपने पिता का इलाज का खर्च उठा रही थी। अब जबकि उनके पिता नहीं रहें तो शैलजा को अपने वयस्कों से उनके आशीर्वाद के अलावा और कुछ नहीं चाहिए। सुरेन जालान ने कहा कि वह शैलजा की बातें सुनकर हैरान रह गए और मन ही मन उसके साहस को नमन किया।