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तस्करों के हाथों से बचाये गए बेजुबान मवेशियों को ध्यान फाउंडेशन करती है सेवा

बीएसएफ के जवान अपनी जान पर खेल कर करते है इनके प्राणों की रक्षा

आसनसोल । हमारे देश में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। शायद यही वजह है कि हमारे देश में गाय की भी पूजा होती है। लेकिन आजकल कुछ लोग पैसों के लालच में गौमाता को कातिलों के हवाले कर देते हैं। अपनी मां को जैसे वृद्धावस्था में वृद्धाश्रम छोड़ देते हैं ठीक वैसे ही गायों को ऐसे ही भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। जहां से तस्कर ऐसे बेजुबान जानवरों को आसान से शिकार बना लेते है। लेकिन आज भी इंसानीयत पुरी तरह से खत्म नहीं हुई है। तभी ध्यान फाउंडेशन जैसी संस्थाएं इन असहाय मवेशियों का खयाल रखते हैं। बीते 16 अक्टूबर को 18 गौवंश को निमतिता बॉर्डर आउटपोस्ट, सदर्न फ्रंटियर, बीएसएफ से ध्यान फाउंडेशन आसनसोल स्थित गौशाला में लाया गया था। उन्हें भारत के बीएसएफ जवानों द्वारा तस्करों से बचाया गया था जो उन्हें भारतीय सीमा पार करवाने की फिराक में थे। उन्हें डीएफ चाकुलिया गौशाला ले जाया जा रहा था, लेकिन उनकी हालत को देखकर आसनसोल में ध्यान फाउंडेशन में आपातकालीन आधार पर रुकना पड़ा। बीएसएफ के सूत्रों का कहना है कि जिस हालत में उन्होंने इन गौवंशों को देखा वह दिल दहला देने वाला था। सभी बेहद दुर्बल थे, दो की हालत नाजुक थी और एक की तो यहां पहुंचने से पहले ही मौत हो गई थी। गंभीर रुप से बीमार मवेशियों को गौशाला पहुंचते ही ड्रिप लगाई गई। इनमें से एक की मौत हो गयी जबकी दुसरी मौत से संघर्ष कर रही है। इन बेजुबान जानवरों की हालत देखकर ही समझा जा सकता है कि इनको किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है। सीमा पर एक तरफ बीएसएफ के जवान इनके दर्द को कम करने और हमारे देश की रक्षा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, दुर्भाग्य से उनके शीर्ष पदाधिकारी स्थिति से बेपरवाह हैं और उनकी नेक सेवा में उनकी सराहना करने में उनकी कोई रुची नहीं हैं। उन्होंने चौकी पर मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था के लिए कुछ भी नहीं किया है। उसकी व्यवस्था ध्यान फाउंडेशन द्वारा ही की जा रही है। उनकी दिलचस्पी इस बात में ज्यादा है कि यह मवेशी गौशाला न जाएं। इस रवैये की जांच की जरूरत है। इस संदर्भ में ध्यान फाउंडेशन की स्वयंसेविका गायत्री कपूर से बात की तो उनकी बातों से कलेजा मुंह को आ गया। उन्होंने कहा कि आसनसोल के उषाग्राम स्थित बंद पड़े ग्लास फैक्टरी परिसर में तस्करों के हाथों से बचाए गए मवेशियों को लाया जाता है। यहां इनकी संस्था की तरफ से पिछले डेढ़ सालों से यह कार्य किया जा रहा है । दिल्ली की इस संस्था के पूरे देश में 43 गौशालाएं हैं जहां ध्यान फाउंडेशन के स्वयंसेवक करीब 70 हजार मवेशियों का ध्यान रखते हैं जिनको तस्करों से बचाया गया है। गायत्री कपुर ने कहा कि बीएसएफ के जवान अपनी जान की बाजी लगाकर तस्करों के हाथों से इनको बचातें हैं लेकिन उनके शीर्ष पदाधिकारी के कारण बीएसएफ जवानों की सारी मेहनत धरी की धरी रह जाती है। गायत्री कपुर ने बताया कि इनके गौशाला में लाए गए ज्यादातर बैल होते हैं । जो इक्का दुक्का गायों को लाया भी जाता है वह इतनी दर्दनाक हालत में होती हैं कि दुध देने लायक नहीं रहती। तस्कर इनको सामान की तरह एक छोटे से वाहन में ठुंस ठुंसकर भरते हैं जिससे इनको चोटें भी लगतीं है। लेकिन पैसों के लालची इन तस्करों को उससे कोई लेनादेना नहीं होता। इतना ही नहीं तस्कर इन मवेशियों की आंखों में हरी मिर्च लगा देते हैं। 10-15 दिनों तक भुख न लगे इसके लिए इन मवेशियों को इंजेक्शन लगाए जातें है। गायत्री कपुर ने आगे बताया कि सीमा पार कराते वक्त इन गायों को या तो क्रेन के सहारे उठाकर सीमा के उसपार फेंक दिया जाता है या फिर केले के पेड़ से बांधकर इनको नदी के रास्ते सीमा पार करवा दिया जाता है । इन तस्करो की हिम्मत इतनी ज्यादा हो गयी है कि जब बीएसएफ के जवान उनको पकड़ने जाते हैं तो उनपर बमबारी की जाती है। उन्होंने कहा कि इतना सब करके जब बीएसएफ के जवान इन मवेशियों को बचाकर स्थानीय पुलिस के हवाले करते हैं तो इनकी नीलामी की जाती है। नीलामी के बाद इनकी क्या हालत होती है यह देखकर किसी का भी दिल कराह उठेगा। गायत्री कपुर ने बताया कि उनकी संस्था ऐसे मवेशियों की सेवा करती है। इनके स्वयंसेवक आपस में ही पैसों का इंतजाम कर इन मवेशियों की सेवा करते हैं। उन्होंने बताया कि इस समय आसनसोल के इनकी गौशाला में तकरीबन 500 गाएं हैं जिनकी ध्यान फाउंडेशन के स्वयंसेवक दिन रात सेवा कर रहे हैं ।

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