आसनसोल रेलपार के फजलु ब्रीज की हालत खस्ता कभी भी हो सकता है हादसा – मो. शाकिर
आसनसोल । आसनसोल नार्थ ब्लाक कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक सेल के चेयरमैन मो. शाकिर ने कहा कि
सरकार और प्रशासन द्वारा आसनसोल के रेलपार इलाके के विकास को लेकर कई दावे किए जाते हैं। लेकिन असल तस्वीर इससे अलग है। उदाहरण के लिए उन्होंने आसनसोल नगर निगम के 25 और 28 नंबर वार्ड को जोड़ने वाली ब्रीज फजलु ब्रीज की बात कही। यह ब्रीज राम किशुन डंगाल अन्तर्गत हाजी नगर का मुख्य मार्ग है। इसी ब्रीज से होकर इस क्षेत्र के लोग आसनसोल रेलवे स्टेशन आसनसोल बाजार आते हैं। लेकिन इस ब्रीज की हालत इतनी जर्जर हो गई है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। आपको बता दें कि यह फजलु ब्रीज ही यहां के लोगों के आवागमन का एकमात्र जरिया है। इसी ब्रीज से ही इलाके के नौजवानों से लेकर बुजुर्ग तक छोटे छोटे बच्चों से लेकर महिलाएं इसी ब्रीज का इस्तेमाल करतीं हैं। लेकिन बेहद अफसोस की बात है कि इतनी महत्वपूर्ण ब्रीज की जर्जर हालत को सुधारने की तरफ न तो स्थानीय पूर्व पार्षद की कोई नजर है न ही आसनसोल नगर निगम ही इसकी तरफ तवज्जो दे रहा है। यहां तक की सत्ता पक्ष के नेताओं का भी इस ब्रीज के रखरखाव को लेकर कोई ध्यान नहीं है। रेलपार के लोगों के मन में बरबस एख ही सवाल उठ रहा है कि आखिर रेलपार की जनता के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? आखिर प्रशासन इनकी बुनियादी जरूरतों को लेकर इतना उदासीन क्यों है? इनको लगता है कि रेलपार के नसीब में विकास के नाम पर जार जार आंसु बहाना ही लिखा है। यहां के बाशिंदों को यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर सत्ता पक्ष के जो प्रतिनिधि हैं। वह इलाके के विकास खासकर नदियों की सफाई को लेकर अपनी आवाज बुलंद क्यों नहीं करते? स्थानीय लोगों द्वारा पिछले दो सालों से नदियों की सफाई को लेकर मुसलसल आंदोलन किया जाता रहा है लेकिन क्या आसनसोल नगर निगम और क्या लोक निर्माण मंत्री किसी ने भी इस मसले को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन 30 सितंबर को आई बाढ़ ने दिखा दिया कि प्रशासन की उदासीनता ने रेलपार को किन हालातों में पंहुचा दिया है। इस दिन की बाढ़ ने आसनसोल के अन्य हिस्सों के साथ साथ रेलपार को पुरी तरह से तहस नहस कर दिया। इस एक दिन की बाढ़ ने जैसे पूरे क्षेत्र में कयामत ढा दिया और यहां के लोगों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। स्थानीय लोगों को अब लगता है कि अगर वक्त रहते प्रशासन रेलपार के अहम समस्याओं के समाधान की तरफ नजर देती तो 30 सितंबर की त्रासदी को टाला जा सकता था।