कागजी मुद्राएं जिसके पास जितनी अधिक है, वही समाज का सर्वप्रथम व्यक्ति है – सुरेन जालान
आसनसोल । सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग में मुद्रा का चलन नहीं था। आपसी लेनदेन में कुशल व्यवहार एवं बातों का ही लेनदेन होता था। कलयुग में सोने, चांदी, कांस्य की मुद्राओं का चलन शुरू हुआ। जब तक इन मुद्राओं का चलन था। धातु के वजन होने के कारण इसके लेनदेन में व्यवहारिकता थी। अब कागजी एवं डिजिटल मुद्राएं चल रही हैं। जिसका कोई भी वजन नहीं है। ये मुद्राएं द्वारा पूरी की पूरी समाजिक व्यवस्था, व्यापार व्यवस्था, पद व्यवस्था एवं ऋण लेन-देन की व्यवस्था खोखली हो गई है। उक्त बातें आसनसोल के व्यवसायी सुरेन जालान ने कही। उन्होंने कहा कि आपसी भेदभाव एवं सभी प्रकार की अशांति जीवन में पैदा हो रही है। चाहे वह व्यापार का मामला हो, रीति रिवाज का मामला हो, सामाजिक पद का मामला हो या फिर डाइवोर्स का मामला हो। सब इन कागजी एवं डिजिटल मुद्राओं पर आधारित है। इन कागजी एवं डिजिटल मुद्राओं के चलते कोई किसी का सगा नहीं। कागजी मुद्राएं जिसके पास जितनी अधिक है। वही समाज का सर्वप्रथम व्यक्ति है।