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भारत का मुकुट बचाने को प्राण बलिदान करने वाले भारतीय जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पुण्यतिथि को बलिदान दिवस के रूप में किया गया पालन

आसनसोल । डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल में जन्में, कश्मीर के भारत के साथ सम्पूर्ण विलय के लिए बलिदान हो गए । आज यदि कश्मीर में 370 नहीं है, दो झंडे नहीं हैं, दो विधान और दो प्रधान नहीं हैं तो उसका श्रेय श्यामा प्रसाद को जाता है जिन्होंने 52 वर्ष की आयु में इतिहास रचा, स्वयं नेतृत्व की नवीन परिभाषा गढ़ी, शेख अब्दुल्लाह और नेहरू की दुरभिसंधि के शिकार हुए और इतिहास में सबसे अनाम, अन्जान अचीन्हे महापुरूष के नाते विदा हुए। श्यामा प्रसाद मुखर्जी देश के एक ऐसे विलक्षण नेता थे जिनका जन्म बंगाल में हुआ, परन्तु बलिदान राष्ट्रीय एकता के लिए कश्मीर में हुआ। उक्त बातें शिल्पांचल के विशिष्ट समाजसेवी, व्यवसायी सह बहुप्रतिभावान कृष्णा प्रसाद ने कही। उन्होंने डॉ. श्यामा प्रसाद की तस्वीर पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया। इस मौके पर कृष्णा प्रसाद ने कहा कि मौलिक प्रकार से वे राष्ट्रीय एकता के लिए अपने शरीर का उत्सर्ग त्यागने वाले पहले राजनीतिक बलिदानी भी कहे जा सकते हैं। उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत ही गरिमामय और देश के श्रेष्ठतम एवं शिखर विद्वानों की संगति में बीता, वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के उस समय के उपकुलपति तथा भारतीय गणित शास्त्र के विश्व विख्यात विद्वान एवं साहित्यिक आशुतोष मुखर्जी के बेटे थे। आशुतोष मुखर्जी के गणित पर लिखे निबंध आज भी विश्व विद्यालयों में पढाए जाते हैं। उनके पास ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति, कला एवं साहित्य का ऐसा अनमोल खजाना था, कि जब उनका देहांत हुआ तो उन्होंने अपनी समस्त साहित्यिक सम्पदा दान में देने की इच्छा व्यक्ति की। वे 87,000 पुस्तकें, चित्र आज कोलकाता संग्रहालय में आशुतोष मुखर्जी खंड में संग्रहीत एवं प्रदर्शित किए गए हैं। जहां देश-विदेश के अनेक विद्वान शोध के लिए आते हैं। हमारे युग को बदलने में जिन महापुरुषों ने प्राणों की बाजी लगाकर देहोत्सर्ग किया, उनमें डॉ. हेडगेवार, सुभाष चन्द्र बोस, विनायक सावरकर और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी हैं, जिनके साथ सेकुलर-कांग्रेस-कम्युनिस्ट भारतीय तत्वों ने अन्याय सामने नहीं आने दिया। श्यामप्रसाद का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनके दो अनुयायी नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने अब्दुल्ला शही की क्रूरताओं पर राष्ट्रीयता का प्रहार करते हुए 35ए तथा 370 का सफाया कर मुखर्जी को राष्ट्र की सार्थक श्रदांजलि अर्पित की। आज न वहां दो झंडे हैं, न दो विधान, न दो प्रधान। कृष्णा प्रसाद ने कहा कि विश्व में एक सशक्त विचार सम्पन्न नेता और उसके संगठन की विजय गाथा का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। पांच दशक में ही लोकतांत्रिक पद्धति से अनूठी एकता यात्रा है यह।

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