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संस्कारों से मनुष्य में शिष्टाचार और सभ्य आचरण की प्रवृत्ति का विकास होता है – सुरेन जालान

आसनसोल । द्वापरयुग के युद्ध में कोरवों के पास दौलत थी। पाण्डवों के पास संस्कार थे। आखिर जीत संस्कार की हुई। त्रेतायुग में राम और रावण के युद्ध में भी रावण के पास सोने की लंका थी एवं कुंभकरण, मेघनाथ जैसे महान योद्धा थे। राम के साथ संस्कार एवं लक्ष्मण जैसा भाई एवं हनुमान जी जैसा संस्कारी भक्त था। आपके पास दौलत हो या न हो परन्तु संस्कार रुपी दौलत अवश्य होनी चाहिए। उक्त बाते आसनसोल के विशिष्ट व्यवसायी सुरेन जालान ने कही। उन्होंने कहा कि हां, संस्कार रुपी दौलत अवश्य होनी चाहिए:  संस्कारों से नैतिकता, संवेदनशीलता, सद्भाव, सहयोग, और सम्मान जैसे गुण विकसित होते हैं। संस्कारों से मनुष्य अपनी सहज प्रवृतियों का विकास करता है और अपना और समाज दोनों का कल्याण करता है। संस्कारों से मनुष्य में शिष्टाचार और सभ्य आचरण की प्रवृत्ति का विकास होता है। संस्कारों से मनुष्य का पारलौकिक जीवन भी पवित्र होता है। संस्कारों के ज़रिए ही समाज का विकास होता है। संस्कारों के ज़रिए ही पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा जाता है।

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