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प्रयागराज के इसी कुंभमेले में धर्माचार्यों को हिंदूधर्म में संशोधन करने की चेतावनी दी – पं.आर्यगिरि

  कहा- हमारे हिंदूधर्म में युगानुसार चिपकाये गये अवैदिक कुरीतियों को यदि इस सुविशाल महाकुंभ मेले में भी नहीं हटाया गया तो मेले के मूल उद्देश्यों के प्रति इसी नाकामी (लापरवाही) से मृतवत् सुसुप्त हिंदूधर्म व हिंदूसमाज भी शीघ्र ही लुप्त हो जायेगा! जामुरिया/आसनसोल । निंगा,आसनसोल, निंगेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी व धर्म-साहित्य-समाज चिंतक पं.आर्य प्रहलाद गिरि ने श्री राम विवाह पंचमी के शुभावसर पर 4 मिनट का एक विडियो जारी करते हुए प्रयागराज-महाकुंभ के आत्ममुग्ध धर्माचार्यों को सजग-सक्रिय करने हेतु निवेदन सह चेतावनी भी दी है कि यदि इस बार भी वे सभी धर्माचार्य गण आपस में एक मंच पर मिलकर, एक सहमति बनाकर, वैदिक सनातन धर्म के संसदीय सम्मेलन में हिंदू-धर्म व हिंदू-समाज में जातिवाद, बहुदेव वाद, और मुहूर्त वाद जैसे अवैदिक अधार्मिक पाखंडों-कुरीतियों-अंधविश्वासों को अमान्य करने की सामूहिक घोषणा नहीं किये, तो हमारे जैसे अनेकों धर्म-हितैषी धर्मसुधारकों को अपने ही इन पथप्रदर्शकों से घोर निराशा तो होगी ही, इन्हीं के दुष्प्रभावों से हर जगह लुटता पिटता मिटता रसातल की ओर चला जा रहा हमारा हिंदू समाज शीघ्र ही इतना अधिक लुप्तप्राय हो जायेगा कि संभवतः यही कुंभमेला हिंदूधर्म के इतिहास का अंतिम कुंभ मेला होकर भी रह जासकता है! विदित हो कि पं.आर्यगिरि ने वर्षों पूर्व रचित “सच्चा-हिंदू” नामक अपने एक क्रांतिकारी पुस्तक में भी भविष्यवाणी की थी कि मुर्दों की भांति अंधभक्ति के नशे में सोया हुआ हिंदू समाज यदि खुद में “धर्म-सुधार-आंदोलन” के तहत एकबार फिर “धार्मिक-क्रांति” लाते हुए अपने धार्मिक व सामाजिक दोषों को दूर करने का खुद ही सफल सटीक प्रयास नहीं किया तो 7 मार्च 2047 की होली ही हिंदुओं की अंतिम होली होगी!” क्योंकि तबतक अपने ही विविध अधार्मिक अंधविश्वासों और विधर्मीय आतंकों से भी मृत-व्यथित हो होकर मूर्ख कायर सा जी रहा न तो ये हिंदू ही बच पायेगा और न हिंदू तीर्थ-त्योहार ही! इन्हीं धर्माचार्यों को लोभ-मोह व द्वेष-दंभ से मुक्त होकर सफल वैदिक धर्मोद्धार करने हेतु पं.आर्य गिरि ने “पाखंड मिटाओ! धर्म बचाओ !!” नामक एक प्रपत्र में समुद्र-मंथन से निकले 14 रत्नों की भांति 14सूत्री उन उपायों को भी बताया है, जिससे हिंदू धर्म दुनिया का पुनः सबसे सरल स्वास्थ्यवर्द्धक सुख-शांति प्रद व्यवहारिक वैज्ञानिक गतिशील सर्व ग्राह्य “विश्व-धर्म” भी बन सकता है! महर्षि दयानंद व स्वामी विवेकानंद को भी अपना आदर्श मानने वाले पं.आर्य गिरि ने अपने सारे क्रांतिकारी धार्मिक विचारों को वेदोचित बतलाते हुए सादर शास्त्रार्थ की भी चुनौती दी है एवं काशी व प्रयाग जाकर इसी धर्म-सुधार-आंदोलन हेतु सभी धर्माचार्यों से शीघ्र ही मिलने की भी बातें रखीं।  

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