जानिए 20 साल अफगानिस्तान में रहने के बाद भी क्यों नाकाम हुआ अमेरिका
दिल्ली । अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में तालिबान को आए एक पखवाड़े से ज्यादा हो गया है। फिर भी अभी तक लोगों को साफ तौर पर यह पता नहीं चल सका है कि आखिर अमेरिका को अफगानिस्तान में नाकामी क्यों झेलनी पड़ी। आखिर 20 साल तक अफगानिस्तान में हावी रहने के बाद अचानक ऐसा क्या हो गया, जो अमेरिका को इस मामले में दुनिया के सामने यूं शर्मिंदगी उठाने पड़ी। अब आगे क्या संभवानाएं हैं और उनमें भारत की क्या स्थिति होगी। ऐसे सभी सवालों के जवाब काबुल में भारत के पूर्व राजदूत गौतम मुखोपाध्याय ने विस्तार से बताया है।
एक ही चर्चा इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ही चर्चा है कि आखिर अमेरिका की अफगानिस्तान में नाकामी कैसे हो गई। पिछले महीने अमेरिका छोड़ने से पहले एक वीडियो वार्ता के अंश इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सामने आए।इस रिपोर्ट में मुखोपाध्याय ने अफगानिस्तान के आज के हालात पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि अमेरिका ने अफगानिस्तान मामले में शुरू से गलती की।
क्यों आया था अमेरिका हकीकत यह है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में अलकायदा और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को खत्म करने के लिए कदम रखा था और उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा कि वे अफगानिस्तान को तालिबान से मुक्त करने आए हैं। लेकिन फिर भी लादेन को खोजने में ही अमेरिका को 10 साल लग गए जिसके बाद वे कह सकें के अलकायदा खत्म हो चुका है।
पाकिस्तान की भूमि कालेकिन सच यह भी है कि वे जानते थे कि उनका सामना आतंकवाद के साथ कट्टरपंथ के साथ होगा जिसे पाकिस्तान से भी बढ़ावा मिल रहा था। इराक युद्ध के बाद अमेरिका का काम आतंकवाद की जगह उग्रवाद से निपटना हो गया था। पाकिस्तान की समस्या की जड़ बुश और ओबामा तक ने माना था जिसे बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने मुखरता से स्वीकार भी किया था।
अमेरिका का कहना है कि वह अफगानिस्तान में आतंकवाद को खत्म करने आया था
कहां किया निवेश अमेरिका की अफागनिस्तान पर सबसे बड़ी गलती पर चर्चा करते हुए इस रिपोर्ट में बंधोपाध्याय ने बताया कि जब अमेरिका ने इस दौरान युद्ध, मीडिया, सिविल सोसाइटी, महिलाओं आदि में बहुत सा निवेश किया, लेकिन उन्होंने अफगानिस्तान पर निवेश नहीं किया। वे जानते थे कि अफगानिस्तान के पास 3 ट्रिलियन की खनिज संपदा है, फिर भी उन्होंने उस पर भी निवेश नहीं किया। उन्होंने लोकतंत्र, व्यापार, आदि किसी पर निवेश नहीं किया।
अमेरिका की वो 5 गलतियां जो अफगानिस्तान पर भारी पड़ी
बड़ा मौका गंवा याइसके अलावा भी कई कारण थे जिससे समस्या बढ़ती गई। वर्ष 2018 में ट्रम्प प्रशासन ने तालिबान से बातचीत शुरू की। लेकिन अमेरिका ने भी अफगानिस्तान को रणनीतिक तौर पर अहम नहीं माना। वे चाहते तो इलाके के विकास के साथ स्थायित्व ला सकते थे, लेकिन उन्होंने यह मौका गंवा दिया मध्यएशिया के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया। लेकिन यह भी हो सकता है कि अमेरिका ने अपने विरोधियों, ईरान, चीन के लिए ही यहां डेरा डाला था।
तालिबान पर अमेरिका ने अफगान की उम्मीदों के मुताबिक कभी काम नहीं किया
पाकिस्तान के मंसूबे 1994 से ही तालिबान पूरी तरह से पाकिस्तान की परियोजना रहा। वर्ष 2001 में हार के बाद वह पाकिस्तान में गया और वहां देवबंदी और वहाबी मुल्लाओं के संरक्षण में पनपा, जहां के मदरसों में बच्चों को भर्ती किया गया जो अब लड़ाके के तौर पर तैयार है जो किसी भी आतंकवादी वारदात को अंजाम देने के लिए समर्पित हैं। वहीं दूसरी अमेरिका ने अफगानिस्तान में लोकतंत्र के लिए कुछ निवेश नहीं किया।
कैसे केवल खनिज के बल पर खूब नोट बटोरेगा तालिबान
भारत के सामने समस्या यह है कि क्या वह कट्टरपंथ तालिबान को पूरी तरह से खारिज करे या अफगानिस्तान में अपने निवेश को बेकार ना जाने देते हुए तालिबान से रणनीतिक रूप चर्चा जारी रखे। मुखोपाध्याय का कहना है कि भारत की तालिबान से रणनीतिक स्तर पर संपर्क अच्छा कदम है। भारत को अफगान लोगों के हितों की बात करते रहते हुए ऐसी बातचीत जारी रखनी चाहिए। लेकिन अफागन लोगों को यह भी ना लगे की भारत स्वार्थी हो गया या उन्हें भूल गया है। फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तालिबान का पाकिस्तान से कितना मजबूत रिश्ता है। फिर भी हमें देखना होगा कि नई अफगानिस्तान सरकार का रवैया कैसा होता है। तब तक हमें इंतजार करना ही होगा।