पुस्तक मेले में अक्सर हिन्दी के पाठकों को होती है हताशा
रानीगंज में पुस्तक मेले का इतिहास है बहुत पुराना
रानीगंज । रानीगंज के राजबाड़ी में रविवार 5 जनवरी को पुस्तक मेले का उद्घाटन हुआ। रानीगंज पुस्तक मेले का उद्घाटन ग्रंथागार मंत्री सिद्दीकुल्ला चौधरी, आसनसोल नगर निगम के मेयर विधान उपाध्याय, जिलाधिकारी एस पन्नमबलम, आसनसोल रामकृष्ण मिशन के सचिव स्वामी सौमात्मानंदजी महाराज, उपमेयर वशिमूल हक, चेयरमैन अमरनाथ चटर्जी, रानीगंज बीडीओ शुभदीप गोस्वामी ने संयुक्त रूप से द्वीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस अवसर पर रानीगंज पुस्तक मेला कमेटी के महासचिव जुगल किशोर गुप्ता विशेष रूप से उपस्थित थे। वहीं लोगों में पुस्तक पढ़ने और जीवन में पुस्तक के महत्व को लेकर जागरूकता लाने को लेकर रानीगंज स्पोर्ट्स एसेम्बली प्रांगण से पदयात्रा निकाली गई। इस पदयात्रा में रानीगंज के विधायक एवं पुस्तक मेले के मुख्य उद्योक्ता तापस बनर्जी ने भी हिस्सा लिया। इसके अलावा रानीगंज के कई स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएं शामिल हुए।
रानीगंज पुस्तक मेले में पहले दिन रविवार को उतनी भीड़ नहीं हुई लेकिन पुस्तकों में रुचि रखने वाले बहुत सारे लोग पहुंचे थे। दूसरे दिन सोमवार को दोपहर के बाद से जमकर भीड़ हुई। इस मेले में विभिन्न तरह की किताबों को देख पढ़ाई-लिखाई करने वालों को मन खिल उठा। वहीं मेले में पहुंचे कुछ लोगों को हताशा हुई कि हिन्दी का कोई स्टॉल नहीं लगा था। कुछ स्टॉलों में हिन्दी की कुछ किताबें नजर आयीं लेकिन दो-चार ही। हां, अंग्रेजी माध्मय स्कूलों की कुछ हिन्दी किताबें नजर आयीं। वहीं पुस्तक मेले में हिन्दी के पाठकों को देखा गया जो सिर्फ घूमते नजर आये। उल्लेखनीय है कि इससे पहले आसनसोल पुस्तक मेले में भी हिन्दी पुस्तकों का स्टॉल नहीं देखा गया। वहां भी हिन्दी के पाठकों को हताशा ही हाथ लगी थी।
रानीगंज पुस्तक मेले का उद्घाटन के अवसर पर ग्रंथागार मंत्री सिद्दीकुल्ला चौधरी ने रानीगंज में मॉडल लाइब्रेरी बनाने का प्रस्ताव दिया। उनके इस प्रस्ताव का लोगों ने स्वागत किया। उल्लेखनीय है कि रानीगंज में दो बड़ी लाइब्रेरियां हैं। एक सष्टिगोड़िया में सरकारी लाइब्रेरी है तो दूसरा तिलक रोड में तिलक पुस्तकालय हैं। ये दोनों ही लाइब्रेरियां पहले यहां की शिक्षा जगत की धड़कन हुआ करती थीं। कभी तिलक पुस्तकालय में अखबार तथा पुस्तकें पढ़ने वालों की भीड़ लगा करती थी। यहां हिन्दी, बांग्ला और अंग्रेजी के सभी अखबार तथा बहुत सारी पत्रिकाएं आती थीं। हिन्दी की अच्छी- अच्छी पुस्तकें थीं। स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले यहां आकर अध्ययन किया करते थे। तिलक पुस्तकालय में अध्ययन कर बहुत सारे युवाओं ने प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण कर अच्छी-अच्छी नौकरी पाई है। आज यह लाइब्रेरी सरकारी तथा स्थानीय सहयोग के अभाव में बदहाल हो गई है। अब न तो उतने अखबार आते हैं और न पुस्तक-पत्रिकाएं। लाइब्रेरी भी खुलने का समय ठीक नहीं रहा है। इस विषय में रानीगंज शहर के कुछ विशिष्ट लोगों का कहना है कि हिन्दीभाषियों की उपेक्षा का कारण इस लाइब्रेरी की दशा बदहाल हुई है।
रानीगंज में रविवार 5 जनवरी को चौथे पुस्तक मेले का उद्घाटन हुआ लेकिन सच्चाई यह है कि रानीगंज में पुस्तक मेले का इतिहास बहुत पुराना है। लगभग तीन-चार दशक पहले स्टेशन के पास वर्तमान बस स्टैंड जो उस समय खाली मैदान हुआ करता था, वहां पुस्तक मेले का आयोजन किया जाता था। बाद में बस स्टैंड बन जाने के बाद इधर – उधर कई जगहों पर हुआ। अब चार वर्षों से राजबाड़ी में इसका आयोजन हो रहा है। इस बार चौथे पुस्तक मेले का आयोजन होने का यह मतलब नहीं है कि इस शहर के लोग पहले पुस्तक मेले के आयोजन से अनजान थे। यह शहर साहित्य प्रेमियों तथा विद्वानों का शहर है इसलिए यहां पुस्तक मेले का इतिहास बहुत पुराना है।