गोवर्धन पूजा यादवों का महापर्व एवं भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में प्रकृति का महान त्यौहार है – नंद बिहारी यादव
आसनसोल ।” भगवान श्रीकृष्ण लोक सांस्कृतिक समाज”आसनसोल के तत्वधान में 32वां गोवर्धन पूजा महोत्सव धादका रोड-आसनसोल राजद कार्यालय के प्रांगण में गोवर्धन मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के परिसर में दीप प्रज्वलित कर समाज के संस्थापक संरक्षक एवं शिल्पांचल के जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ता नंद बिहारी यादव ने किया। दीप प्रज्वलित करने के बाद भगवान श्री कृष्ण के पूजा अर्चना किया गया। तदोपरांत गाय की पूजा की गई। गाय को स्नान कराने के बाद उसे चांदनी उड़ाया गया। गले में माला डाला गया। उसके तिलक लगाने के बाद गाय की पूजा अर्चना की गई। फिर गाय को भोग और मिठाई गुड़ खिलाकर पूजा संपन्न कराया गया। इस अवसर पर समाज के संस्थापक संरक्षक नंद बिहारी यादव ने कहा आज से 5000 वर्ष पूर्व आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धन पूजा की परंपरा की नींव रखी थी। श्री यादव ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म विपरीत परिस्थितियों में ही हुआ था। इस समय तत्कालीन आर्यावर्त अब भारत में अराजकता अधर्म चरम सीमा पर था। उस समय भी धर्म की आड़ में मनुवादी संस्कृति मानवता और इंसानियत को लूट कर रही थी और मानवता तथा इंसानियत को गुलाम बनाए हुए थी। मनुवादी ताकत इतनी मजबूत थी कि तथाकथित पाखंडी धर्म की आड़ में कृषक और किसान के संपदा और उनके मेहनत से उपजा हुए अनाज गायों के दूध सरी संपदा को पूजा और धर्म का भय दिखाकर वसूल लेते थे। श्री यादव ने यादव कहा कि 10 वर्ष की आयु में जब भगवान श्री कृष्ण गोकुल वृंदावन नंदगांव एवं पूरे मथुरा के ग्रामीण क्षेत्रों में यादवों को संगठित करके उन्हें जागृत किया और जहां श्री कृष्ण के जन्म के पूर्व इंद्र की पूजा की प्रथा चली आ रही थी। उसको भगवान श्रीकृष्ण ने चुनौती देते हुए अपने पिता नंद और वहां के यदुवंशियों से यह तर्क दिया कि पूजा और इबादत उसी की की जाती है जो शक्तिमान होता है और शक्तिमान वही है जो सनातन है और सत्य है जिसको हम देख सकते हैं सुन सकते हैं जिससे हम साक्षात जीवन में कुछ प्राप्त कर सकते हैं एहसास कर सकते हैं जो हमें ऊर्जा देता है लेकिन उन्होंने अपने बाबा नंद और यादवों से यह प्रश्न किया कि आप लोगों में से किसी ने इंद्र को देखा है क्या इनमें से कुछ लिया है क्या इंद्र ने आप लोगों को कुछ दिया है क्या इस पर सारे यादों ने कहा कि नहीं इंद्र को हम नहीं देखे हैं हमें बताया जाता है इस पर भगवान श्रीकृष्ण इस काल्पनिक इंद्र को एक पाखंड की संज्ञा दी और पूजा की परंपरा को यहीं खत्म कर दिया और उन्होंने सारे यादव समाज को लेकर सनातन प्रकृति और यदुवंशियों की सबसे बड़ी संपदा गोधन गोवर्धन पर्वत पर पूजा करने की परंपरा शुरू की जहां उस पर्वत पर जो गाय के चारा देते थे हरे उस पर्वत पर गाय को पूजा अर्चना की गई और जो भी पकवान दही दूध मक्खन मलाई इंद्र को ले जाए जा रहा था वह सारे पकवान और सामग्री गाय को खिला दिया गया यहीं से गाय की पूजा गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हुई जो आज तक भारत ही नहीं देश दुनिया में भी मनाया जाता है श्री यादव ने कहा कि आज के युग में भी भारतवर्ष में सनातन प्रकृति पूजा की प्रासंगिकता है उन्होंने कहा कि वर्तमान में धर्म की आड़ में पूजा के नाम पर लोगों का शोषण और दोहन किया जाता है उन्हें मानसिक रूप से गुलाम बनाया जाता है और उन को कमजोर किया जाता है श्री यादव ने कहा कि वर्तमान समय में जो धर्म और पूजा की परिभाषा है वह पूरी तरह से ढोंग पाखंड पर आधारित है और आज के समय में गोवर्धन पूजा की प्रासंगिकता की आवश्यकता है कि इस ढोंग पाखंड पर आधारित पूजा के समाप्त करके सनातन सत्य और प्रकृति की पूजा की जाए जो हमने ऊर्जा देते हैं जो हमें शक्ति देती हैं जो हमें जीवन दान देता है वही पूजा का का प्रतीक है श्री यादव ने बताया कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में गोवर्धन पूजा होती है जहां भारत के लोग बसे हुए हैं जैसे युगांडा थाईलैंड मॉरीशस सिंगापुर गोवर्धन पूजा इस अवसर पर समाज के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे मुख्य रूप से देव लाल यादव देव कुमार यादव आसनसोल न्यायालय के अधिवक्ता यादवेंद्र सिद्धांत निशांत यादव जितेंद्र यादव काशीनाथ यादव आनंद गोप जीवन यादव विश्वजीत दत्ता सविता दत्ता सुना दत्ता उपस्थित थे उल्लेखनीय है की कोरोनावायरस बीमारी के कारण भगवान श्रीकृष्ण लोक सांस्कृतिक समाज ने गोवर्धन महोत्सव को सीमित सदस्यों को ही निमंत्रित कर इस परिपाटी की परंपरा को आगे बढ़ाया श्री यादव ने बताया अगर सब कुछ ठीक रहा था आने वाले वर्ष 2022 में फिर से इस महोत्सव को बड़े और विशाल तौर पर मनाया जाएगा और गोवर्धन पूजा के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा जैसे पिछले कई 25 वर्षों से समाज के द्वारा कराया जाता रहा है श्रीयादे ने सभी उपस्थित सदस्यों को धन्यवाद ज्ञापन दीया।