विश्व साइकिल दिवस : साइकिल निर्माता कंपनी सेनरेले कंपनी का गौरवशाली इतिहास कैसे भुला दिया गया?
नए स्वतंत्र देश में बनी सेनरेले फैक्ट्री खंडहर में तब्दील
आसनसोल(परितोष सन्याल)। आज मंगलवार को विश्व साइकिल दिवस है। विभिन्न सामाजिक संगठनों ने औद्योगिक क्षेत्र में कई कार्यक्रम आयोजित करने का आह्वान किया है, जिसमें प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाए रखने का आह्वान किया गया है और जागरूकता के उस संदेश में एशिया की सबसे बेहतरीन साइकिल निर्माता कंपनी सेनरेले कंपनी का गौरवशाली इतिहास कैसे भुला दिया गया? इस ऐतिहासिक कंपनी के पूर्व कर्मचारियों ने यादों के समंदर में फिर से गोते लगाए। उन्होंने प्रार्थना की कि यह फैक्ट्री फिर से ‘फीनिक्स’ पक्षी की तरह उठ खड़ी हो। आस-पास का माहौल चहल-पहल से भर जाए। क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं के चेहरों पर काम मिलने की अमूल्य मुस्कान लौट आए। देश अभी आजाद नहीं हुआ था। इस कारखाने के निर्माण का विचार प्रमुख बंगाली उद्योगपति सुबीर सेन के मन में पैदा हुआ था। 1949 में ब्रिटिश साइकिल निर्माता नॉटिंघम रेल के साथ संयुक्त उद्यम में आसनसोल जनरल साइकिल कंपनी का गठन किया गया था। 1951 में उत्पादन शुरू हुआ। शुरुआत में इंग्लैंड से पार्ट्स आयात कर और उन्हें यहां असेंबल कर साइकिलों को बाजार में बेचा जाता था। कुछ साल बाद यहां पार्ट्स का उत्पादन स्थायी रूप से शुरू हो गया और साइकिल के पहिए थमे नहीं। आधी सदी के लंबे सफर में कई करोड़ की साइकिलों ने देशी-विदेशी बाजारों पर कब्जा कर लिया। यहां राज, हंबर, जनरल, रॉबिन हुड, बलाका पांच तरह की साइकिलों का निर्माण होता था। इनमें बलाका और हंबर की विदेशी बाजार में काफी मांग थी। 70 के दशक में तत्कालीन केंद्र सरकार ने आसनसोल में तीन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया। 1972 में कोयला खदान, 1973 में इस्को कारखाना और 1975 में जनरल साइकिल कंपनी। राष्ट्रीयकरण के बाद इस कारखाने का नाम साइकिल कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया रखा गया। लेकिन दुर्भाग्य की शुरुआत 90 के दशक में हुई। धीरे-धीरे फैक्ट्री की हालत खस्ता हो गई। अधिकारियों के दबाव में कई कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनी पड़ी। अंत में पहिए घूमने बंद हो गए। जनवरी 2002 में फैक्ट्री बंद कर दी गई। एक झटके में करीब 350 कर्मचारियों की छंटनी कर दी गई। करीब 300 एकड़ जमीन पर बनी फैक्ट्री अब खंडहर हो चुकी है। करीब 500 एकड़ जमीन पर बनी फैक्ट्री हाउसिंग समेत विशाल टाउनशिप अभी भी बची हुई है। फैक्ट्री के आसपास बनी सांस्कृतिक गतिविधियां, खेल के मैदान और मनोरंजन केंद्र सब अतीत की बात हो चुकी हैं। पूर्व कर्मचारी आज भी उस सुनहरे दौर से चिपके हुए हैं। ऐसा ही एक चेहरा है रथिन बनर्जी। वे कह रहे थे, ‘उच्च गुणवत्ता वाली साइकिलें बनती थीं। लेकिन बाजार अभी भी मौजूद है। सरकारी नीतियों के कारण फैक्ट्री बंद हो गई।’
कंपनी के अस्पताल के सीएमओ अरुणाभ सेनगुप्ता के शब्दों में, ‘हर साल राज्य सरकार इस राज्य में सबुजसाथी के लिए करीब 10 लाख साइकिलें बांटती है। वे साइकिलें लुधियाना से लाई जाती है। मैं आसनसोल में यह कारखाना खोलने और वहां से साइकिल बनाने के लिए आवेदन कर रहा हूं। इससे क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलेगा।’ अगर ऐसा प्रस्ताव सेनरल में साइकिल कारखाने के जन्म से लेकर अंत तक आता, तो शायद तस्वीर बदल जाती। प्रसिद्ध पोलिश-अमेरिकी समाजशास्त्री लेसजेक सिबिल्स्की ने पर्यावरण के संतुलन की रक्षा और अनियंत्रित प्रदूषण को रोकने के लिए पांच कारणों का हवाला देते हुए साइकिल के उपयोग को लोकप्रिय बनाने के लिए पहली बार साइकिल दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। उनके प्रस्ताव के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2018 में 3 जून को विश्व साइकिल दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। जबकि पहली दुनिया के देशों में साइकिल का बोलबाला है, इस देश में सेनरल जैसी साइकिल फैक्ट्रियां बंद हो गईं।
हालांकि, इतिहास को वापस लाने की मांग पूरे औद्योगिक क्षेत्र में बनी हुई है। आसनसोल के मेयर बिधान उपाध्याय कह रहे थे, ‘वहां कारखाने की जमीन को लेकर कानूनी पेचीदगियां हैं। अगर वह पूरी हो जाती है, तो औद्योगिक क्षेत्र के निवासियों की अपील पर विचार किया जा सकता है।’
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